________________
२८
आप्तवाणी-६
दादाश्री : अभी आपको कोई व्यक्ति गाली दे रहा हो, तब उस समय यदि आपको मेरा शब्द याद आए और उस अनुसार निश्चित हो जाए कि मुझे 'समभाव से निकाल' करना है, तो उसे तप कहते हैं। उस घड़ी तप ही रहता है।
सभी बाह्य तप स्थूल तप कहलाते हैं, उनका फल भौतिक सुख मिलता है। और आंतरिक तप सूक्ष्म तप है, उसका फल मोक्ष है।
कोई आपको गालियाँ दे, उस समय भीतर मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार सभी तपता है, उस तप को आप ठंडा होने तक देखते रहो, वह सूक्ष्म तप कहलाता है।
सास बहू को डाँटती रहती हो, और बहू समझदार हो तो उसे सूक्ष्म तप बहुत मिलता रहता है। हिन्दुस्तान में यह तप अपने आप ही मुफ्त में घर बैठे मिलता रहता है। घर बैठे गंगा है, परंतु ये लोग लाभ नहीं उठाते न! पति आपको कुछ कह दे, उस घड़ी आपको तप करना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : 'अक्रम विज्ञान' में तप का स्थान कहाँ पर है?
दादाश्री : तप करना अर्थात् क्या? जो पिछला हिसाब चुकाना पड़ता है, उसे चुकाते समय मिठास भी आती है और कड़वा भी आता है। मिठास
आए वहाँ भी तप करना है और कड़वा आए वहाँ भी तप करना है। डिस्चार्ज कर्म कड़वा-मीठा फल दिए बगैर तो रहता ही नहीं न?
प्रश्नकर्ता : इस व्यक्ति ने मुझे गाली दी, तो उसका मुझे तुरंत पता चल जाता है कि यह मेरे कर्म का उदय है। वह निर्दोष है, तो उसमें तप किसे कहेंगे?
दादाश्री : इस ज्ञान से तप करना हुआ। इसमें खुद को तप करना नहीं पड़ता। भीतर मन-बुद्धि जो तपते हैं, उन्हें समतापूर्वक 'देखते' रहना, वह तप है। उनमें तन्मयाकार नहीं होना है। पूरा जगत् मन-बुद्धि तपते है, तब खुद तप जाता है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् तप करना पड़ेगा?