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आप्तवाणी-६
आपके बोल का आपको दुःख नहीं रहता। यानी इस प्रकार सारा हल आ जाता है।
प्रश्नकर्ता : वाणी जड़ है, फिर भी इफेक्टिव क्यों है?
दादाश्री : हाँ, वाणी जड़ है। फिर भी अधिक से अधिक इफेक्टिव वाणी ही है। उसके कारण तो इस जगत् का अस्तित्व है। वाणी का स्वभाव ही इफेक्टिव है।
प्रश्नकर्ता : वाणी पर कंट्रोल किस तरह लाएँ?
दादाश्री : वाणी पर कंट्रोल तो... एक तो ज्ञानी के पास से आज्ञा लेकर मौन धारण करे तब होगा, नहीं तो खुद मौन धारण करना, लेकिन वह तो खुद के अधीन नहीं है। उदय से अपने आप मौन नहीं आएगा क्योंकि उदय तो सारा व्यवस्थित के अधीन है। इसलिए ज्ञानी की आज्ञा लेकर मौन धारण करे तो हितकारी है। दूसरा, वाणी को कंट्रोल करने के लिए यदि प्रतिक्रमण करेगा तो होगा। वाणी टेपरिकॉर्ड है। उस छपे हुए के अलावा अधिक या कम कुछ भी नहीं बोला जा सकेगा। यानी कि कंट्रोल के लिए ये दो ही रास्ते हैं।
प्रश्नकर्ता : पूर्वजन्म में या दूसरे जन्म में वे ही संयोग और वे ही व्यक्ति मिलेंगे, और वही वाणी निकलेगी, ऐसा है? टेप हो चुका है, उसका अर्थ क्या?
दादाश्री : अपने यहाँ पर साहब तेज़ी से बोलते हैं और स्टेनो लिख लेता है। वह किस तरह लिख लेता होगा? वह कौन सी भाषा होती है?
प्रश्नकर्ता : 'शोर्टहेन्ड'।
दादाश्री : और उससे आगे कुछ नया निकला है न? वो कोड लेंग्वेज कहते हैं या क्या?
प्रश्नकर्ता : हाँ, कोड लेंग्वेज।
दादाश्री : यह सब कोड लेंग्वेज और शोर्टहेन्ड सब अंदर टाइप होता है। अपना भाव अंदर हुआ कि, 'अच्छे-अच्छों को बिठा दूं, ऐसी वाणी बोलूँ, मैं ऐसा हूँ।' तो इतने कोडवर्ड से वह पूरा प्रकाशमान हो जाता