________________
२२०
आप्तवाणी-६
काम निकाल लो इसलिए जहाँ-जहाँ, जिस-जिस दुकान में अपना मन उलझे, उस दुकान के भीतर जो शुद्धात्मा हैं, वे ही हमें छुड़वानेवाले हैं। इसलिए उन से माँग करनी चाहिए कि 'मुझे इस अब्रह्मचर्य विषय से मुक्त करें।' और सभी जगह आप छूटने के लिए भटको, वह नहीं चलेगा, उसी दुकान के शुद्धात्मा आपको इस विधि द्वारा छुड़वानेवाले हैं !
अब ऐसी किसी की बहुत सारी 'दुकानें' नहीं होती। थोड़ी ही 'दुकानें' होती हैं, जिन्हें बहुत ‘दुकानें हों उन्हें अधिक पुरुषार्थ करना पड़ेगा, वर्ना जिनकी थोड़ी सी ही 'दुकानें' हों उन्हें तो साफ करके एक्जेक्ट' कर लेना चाहिए। खाने-पीने में कोई हर्ज नहीं है परंतु इस विषय की परेशानी है। स्त्री विषय और पुरुष विषय, ये दोनों बैर खड़े करने के कारखाने हैं, इसलिए जैसे-तैसे करके हल लाओ।
प्रश्नकर्ता : इसीको आप 'काम निकाल लेना' कहते हैं?
दादाश्री : और क्या फिर? ये सब जो रोग हैं वे निकाल देने हैं! इनमें से मैं आपको कुछ भी 'करने' को नहीं कहता हूँ। सिर्फ 'जानने' को कहता हूँ। यह 'ज्ञान' 'जानने' योग्य है, 'करने' योग्य नहीं है। जो ज्ञान जाना, वह परिणाम में आए बगैर रहेगा ही नहीं। इसलिए आपको कुछ भी नहीं करना है। भगवान महावीर ने कहा था कि वीतराग धर्म में 'करोमि, करोसि और करोति' नहीं होता। अपनी यह अटकण है, आपको उसका पता चलता है या नहीं चलता?
प्रश्नकर्ता : तुरंत ही पता चल जाता है।
दादाश्री : जिस प्रकार लफड़े को लफड़ा जानने से वह छूट जाता है, वैसे ही अटकण को अटकण जानोगे तब वह छूट जाएगी। भगवान ने कहा है कि 'तने अटकण को जाना?' तब कहे, 'हाँ।' तब भगवान कहते हैं, 'तो तू मुक्त है।' फिर आपको कौन-से 'रूम' में बैठना है, वह आपको देखना है ! बाहर कंकड़ उड़ रहे हों तो 'आपको' अपने 'रूम' में बैठ जाना चाहिए और 'क्लीयरन्स' की बेल बजे तब बाहर निकलना चाहिए।