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आप्तवाणी-६
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'शुद्धात्मा' देखने से आपको बहुत फायदा होगा। सामनेवाले को फायदा तो सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' ही कर सकते हैं!
प्रश्नकर्ता : दादा, आपने चार प्रकार की रमणता बताई। वे ज़रा फिर से बताइए न!
दादाश्री : कुछ लोग 'मैं शुद्धात्मा हूँ, मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा बोलते हैं। कुछ लोग लिखते हैं कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ,' तो ऐसा करने से देह भी रमणता में आ गया, ऐसा कहा जाएगा। देह-वाणी और मन, तीनों ही लिखते समय हाज़िर रहते हैं, जबकि कुछ लोग, बाहर का व्यवहार चल रहा हो उसके बावजूद भी यदि मन से वास्तव में 'शुद्धात्मा' के गुणों में रमणा करते हैं, वे हैं। शुद्धात्मा के गुणों में रमणा करना जैसे कि, 'मैं अनंत ज्ञानवाला हूँ, मैं अनंत शक्तिवाला हूँ..' उसे सिद्धस्तुति कहते हैं। वह बहुत फलदायी है!
प्रश्नकर्ता : दादा, आप जिस प्रकार दूसरों के सुख के लिए प्रयत्न करते हैं और कितनों को भयंकर दु:खों की यातना में से परम सुखी बना देते हैं, तो हमें यदि वैसा बनना हो तो बन सकते हैं या नहीं?
दादाश्री : हाँ, बन सकते हो। परंतु आपकी उतनी सारी केपेसिटी हो जानी चाहिए। आप निमित्त रूप बन जाओ। उसके लिए मैं आपको तैयार कर रहा हूँ, वर्ना आप करने या बनने जाओगे, तो कुछ भी हो पाए ऐसा नहीं है!
प्रश्नकर्ता : तो निमित्त रूप बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
दादाश्री : यही सब जो मैं बता रहा हूँ वह और निमित्त रूप बनने से पहले कुछ प्रकार का कचरा निकल जाना चाहिए।
उसमें किसी पर गुस्से होने का, किसी पर चिढ़ने का ऐसे सब हिंसकभाव नहीं होने चाहिए। हालाँकि वास्तव में आपमें ये हिंसकभाव नहीं हैं, ये आपके डिस्चार्ज हिंसकभाव हैं, परंतु जो डिस्चार्ज हिंसकभाव हैं, वे खत्म हो जाएँगे तब ये सब शक्तियाँ हैं, वे ओपन होंगी। डिस्चार्ज चोरियाँ,