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आप्तवाणी-६
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सब से अच्छा है! 'एडजस्ट' होने का भाव भी अच्छा नहीं है। वह सब संसार है। इस रूप में या उस रूप में, सारा संसार ही है। इसमें न तो धर्म है, न ही आत्मा।
प्रश्नकर्ता : 'फाइलों का समभाव से निकाल नहीं हो तो सामनेवाले व्यक्ति को दुःख होगा?
दादाश्री : उसका निकाल दस दिन बाद होगा, आज महँगाई में नहीं होगा तो जब सस्ता हो जाएगा, उस समय होगा। उसके लिए हमें रातों को जागने की ज़रूरत नहीं है। हम 'शुद्धात्मा' हैं, पहले खुद का काम कर लेना है और दूसरों को दुःख हो जाए तो उसका प्रतिक्रमण कर लेना है। दूसरे सभी झंझटों में नहीं पड़ना चाहिए। जैसा तू करने को कहता है, वैसा यदि 'ज्ञानीपुरुष' करें, तो उसका कब अंत आएगा? ऐसे कितने लफडे?
प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि सामनेवाले के साथ एडजस्टमेन्ट रखने का भाव भी नहीं होना चाहिए। उसका अर्थ यह है कि दूसरे को एडजस्टमेन्ट देने के भाव में तन्मयाकार होने की ज़रूरत नहीं है, सुपरफ्लुअस रूप से करना है, ऐसा आप कहना चाहते हैं?
दादाश्री : एडजस्टमेन्ट बहुत प्रकार के होते हैं। कुछ एडजस्टमेन्ट तो लेने जैसे ही नहीं होते। कुछ एडजस्टमेन्ट लेने जैसे होते हैं। परंतु उनके लिए भाव रखने की भी ज़रूरत नहीं है। क्या होता है उसे देखते' रहना। इतना करने से एक जन्म में छूटा जा सकेगा। थोड़ा-बहुत उधार रहेगा तो अगले जन्म में चुक जाएगा।
इससे मन आमळे नहीं चढ़े, इतना रखना। जिस बात से अपना मन आमळे चढ़े (विचारों का बवंडर उठना, बहुत विचार आने से अभाव होना) तो उस बात को बंद रखना। मन आमळे चढ़े तो भीतर दुःख होता है, घबराहट होती है और बहुत आमळे चढ़े तो चिंता होती है। इसलिए मन के आमळे चढ़ने से पहले हमें बात को बंद कर देना चाहिए। यह इसका लेवल है।