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आपसे कोई भी घबरा जाए तो उसमें आपका क्या बड़प्पन? आपके धमकाने से सामनेवाले में परिवर्तन हो तो नुकसान उठाकर भी आपका धमकाना काम का !
आपमें जब कपट नहीं रहेगा, तब आपके साथ कोई भी सामने से कपट करने नहीं आएगा । जगत् खुद अपना ही प्रतिबिंब है । अपना ही फोटो है यह सारा ! हमारे खुद के निष्कपट भाव का प्रभाव ही सामनेवाले को कपट रहित कर सकता है !
‘सामनेवाले का समाधान करना, वह अपनी ही ज़िम्मेदारी है' ऐसा जब भीतर फिट हो जाएगा, तब कोई भी बाह्य प्रयत्न किए बिना स्वयं की सूझ से आज नहीं तो कल, परंतु सामनेवाले को समाधान होगा ही खुद बदलना है, न कि सामनेवाला बदले उसकी राह देखते-देखते 'क्यू' में बैठे रहना है।
खुद आज शुद्ध हुआ, अहंकार रहित हुआ, परंतु अभी तक के पिछले अहंकार के प्रतिस्पंदन लोग किस तरह एकदम से भूल जाएँगे? वे प्रतिस्पंदन तो रहेंगे ही। जब तक प्रतिस्पंदन स्वयं बंद नहीं हो जाएँ, तब तक इंतज़ार करने के अलावा चारा नहीं है ।
दर्पण तो, जो कोई उसके सामने चेहरा रखे, उसका प्रतिबिंब दिखाता है। ऐसा, दर्पण जैसा ‘क्लीयर' हो जाना है। अटकण के कारण दर्पण जैसा क्लीयरेन्स नहीं हो पाता । इसलिए लोगों को आपकी तरफ अट्रैक्शन नहीं होता। अट्रैक्शन होने के बाद तो उसका एक-एक शब्द ब्रह्मवाक्य बन
जाएगा।
अरे, इस अटकण के कारण तो आपनी सच्ची बात भी लोगों को अच्छी नहीं लगती। उसके कारण मुक्त हास्य भी नहीं निकलता और वाणी में भी खिंचाव रहता है !
अनंत जन्मों की भटकन किसलिए हुई ? अटकण से! आत्मसुख चखा नहीं, इसलिए विषयसुख की अटकण पड़ गई ! 'ज्ञानीपुरुष' की कृपा और खुद का ज़बरदस्त पराक्रमभाव, उससे अटकण टूटती है। अटकण
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