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आप्तवाणी-६
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धन कौन ले जाएगा? आपका धन गलत होगा तो कौन ले जाएगा? वह तो, उनकी भी ज़रूरत है। वे निमित्त हैं बेचारे! इन सभी की ज़रूरत है।
प्रश्नकर्ता : किसी की पसीने की कमाई चली जाती है।
दादाश्री : वह जो पसीने की चली जाती है, उसके पीछे भी रहस्य है। वह इस जन्म की पसीने की लगती है, परंतु सारा पहले का हिसाब है। बहीखाते सब बाक़ी हैं इसलिए। नहीं तो कभी भी अपना कोई कुछ ले नहीं सकता। किसी की ऐसी शक्ति ही नहीं है। और यदि ले ले तो जानना कि अपना ही कोई आगे-पीछे का हिसाब है। इतना अधिक नियमवाला यह जगत है। साँप भी छूए नहीं, यह सारा आँगन साँप से भरा हुआ हो परंतु कोई भी साँप उसे छू नहीं सकेगा, इतना अधिक नियमवाला जगत् है। बहुत सुंदर जगत् है। संपूर्ण न्यायस्वरूप है, फिर भी लोगों को समझ में नहीं आए और खुद की भाषा में बोलें तो क्या होगा?
प्रीकॉशन, वही 'चंचलता' । प्रश्नकर्ता : यदि बरसात हो जाए तो 'ऐसा करेंगे' ऐसा हो, तो क्या वह विकल्प कहलाता है? सहज भाव से सब सोचना तो पडेगा न? सोचने के बाद जो हो वह ठीक है, परंतु ऐसे सोचना, वह क्या दख़ल किया, ऐसा कहा जाएगा या विकल्प किया, ऐसा कहा जाएगा?
दादाश्री : जिसने 'ज्ञान' नहीं लिया हो, उसके लिए वह सब विकल्प ही कहलाएगा। जिसने 'ज्ञान' लिया हो और समझ गया हो, उसे फिर विकल्प नहीं रहते। शुद्धात्मा के तौर पर 'हमें' ज़रा सा भी सोचना ही नहीं होता। अपने आप ही जो आएँ, उन विचारों को जानना होता है!
प्रश्नकर्ता : उसका अर्थ ऐसा हुआ कि कोई प्रिकॉशन लेनी ही नहीं चाहिए?
दादाश्री : प्रिकॉशन तो होती होंगी? अपने आप हो जाए, वही प्रिकॉशन। इसमें प्रिकॉशन लेनेवाला कौन रहा अब?
दिन दहाड़े आप ठोकर खाते हो (चिंता, कषाय, मतभेद होते हैं)!