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आप्तवाणी-६
किसी देहधारी को उपयोग नहीं हो, ऐसा नहीं हो सकता। पैसे गिनते समय आप देख आना। उस घड़ी बहू आई हो, बेटी आई हो तो भी वह उन्हें देखता है, लेकिन उसे नज़र नहीं आता। वह पत्नी कहती है कि, 'आप पैसे गिन रहे थे तब हम आए थे, फिर भी हम आपको नहीं दिखे?' तब वह कहता है कि, 'नहीं, मेरा लक्ष्य नहीं था!' आँखें देखें फिर भी दिखे नहीं, वह उपयोग!
अभी भी हमारा शुद्धात्मा में उपयोग है। आपके साथ बातें कर रहा हूँ या भले हू कुछ भी कर रहा हूँ, लेकिन हमारा उपयोग में उपयोग रहता है! ये मन-वचन-काया उनका कार्य करते हैं, वहाँ पर भी उपयोग में उपयोग रखा जा सकता है।
आपको खुद को तो जितना रहे उतना ठीक। नहीं रहे तो थोड़े ही कोई सुरसागर में (बड़ौदा का तालाब) गिरना चाहिए? अपना यह सुरसागर तालाब ढूँढ़ने का धंधा नहीं है।
आत्मा और यह प्रकृति दोनों ही अलग हैं, स्वभाव से अलग हैं। सब तरह से अलग हैं। संसार में आत्मा बिल्कुल भी उपयोग में नहीं आता। सिर्फ आत्मा का प्रकाश ही उपयोग में आता रहता है। वह प्रकाश नहीं हो तो यह प्रकृति बिल्कुल भी चलेगी ही नहीं। यह प्रकाश है, तो यह सारी प्रकृति चल रही हैं, बाकी आत्मा इसमें कुछ भी नहीं करता।