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________________ २२८ आप्तवाणी-३ राग-द्वेष मत करो। यह तो अंदर कुछ आसक्ति रह जाती है, इसलिए मार पड़ती है। इस व्यवहार में एकपक्षीय, नि:स्पृह हो जाएँ तो टेढ़े कहलाएँगे। जब हमें ज़रूरत हो, तब सामनेवाला टेढा हो फिर भी उसे मना लेना पड़ता है। स्टेशन पर मज़दूर चाहिए तो वह आनाकानी कर रहा हो, तब भी उसे चार आने कम-ज्यादा करके भी मना लेना पड़ता है, और नहीं मनाओगे तो वह बैग आपके सिर पर ही डालेगा न? 'डोन्ट सी लॉज, प्लीज़ सेटल' (कानून मत देखना, कृपया समाधान करो), सामनेवाले को 'सेटलमेन्ट' लेने के लिए कहना, 'आप ऐसा करो, वैसा करो', ऐसा कहने के लिए टाइम ही कहाँ होता है? सामनेवाले की सौ भूलें हों, तब भी हमें तो खुद की ही भूल कहकर आगे निकल जाना है। इस काल में लॉ (कानून) तो देखा जाता होगा? यह तो अंतिम स्तर पर आ गया है। जहाँ देखो वहाँ दौडादौड़ और भागम्भाग। लोग उलझ गए हैं। घर जाए तो वाइफ चिल्लाती है, बच्चे चिल्लाते हैं, नौकरी पर जाए तो सेठ चिल्लाता है, गाड़ी में जाए तो भीड़ में धक्के खाता है, कहीं भी चैन नहीं है। चैन तो चाहिए न? कोई लड़ने लगे तो हमें उसके ऊपर दया रखनी चाहिए कि अहोहो! इसे कितनी अधिक बेचैनी होगी कि वह लड पड़ता है ! बेचैन हो जाते हैं, वे सब कमज़ोर हैं। प्रश्नकर्ता : बहुत बार ऐसा होता है कि एक समय में दो लोगों के साथ एक ही बात पर 'एडजस्टमेन्ट' लेना होता है, तो एक ही समय में सभी ओर किस तरह ले सकते हैं? दादाश्री : दोनों के साथ लिया जा सकता है। अरे, सात लोगों के साथ भी लेना हो, तब भी लिया जा सकता है। एक पूछे, 'मेरा क्या किया?' तब कहें, ‘हाँ भाई, तेरे कहे अनुसार करूँगा। दूसरे को भी ऐसा कहेंगे, 'आप कहोगे वैसा करूँगा।' 'व्यवस्थित' के बाहर होनेवाला नहीं है, इसलिए चाहे जैसे झगड़ा खड़ा मत करना।' यह तो सही-गलत कहने से भूत परेशान करते हैं। हमें तो दोनों को एक जैसा कर देना है। इसे अच्छा कहा इसलिए दूसरा गलत हो गया, इसलिए फिर वह परेशान करता है। पर दोनों का मिक्स्चर कर डालें इससे फिर असर नहीं रहेगा। एडजस्ट ऐवरीव्हेर की हमने खोज की है। सही
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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