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________________ आप्तवाणी-३ इसलिए फिर तो वह दीवार से टकराता है, दरवाज़ों से टकराता है, लेकिन वायर नहीं टूटता। इसीलिए कोई फ्यूज़ डाल दे तो वापस रास्ते पर आएगा, नहीं तो तब तक वह उलझता रहेगा। २०९ संसार है इसीलिए घाव तो पड़नेवाले ही हैं न? और पत्नी भी कहेगी कि अब घाव भरेंगे नहीं । परंतु संसार में पड़े हैं, इसीलिए वापस घाव भर जाते हैं। मूर्छा है न? मोह के कारण मूर्छा है । मोह के कारण घाव भर जाते हैं। यदि घाव नहीं भरते, तब तो वैराग्य ही आ जाता न? ! मोह किसे कहते हैं? सभी, अनुभव बहुत हुए हों परंतु भूल जाता है। डायवोर्स लेते समय निश्चित करता है कि अब किसी स्त्री से साथ शादी नहीं करनी, फिर भी वापस साहस करता है । .. यह तो कैसा फँसाव? शादी नहीं करोगे तो जगत् का बैलेन्स किस तरह रहेगा? शादी कर न। भले ही शादी करे ! 'दादा' को उसमें हर्ज नहीं है, परंतु हर्ज नासमझी का है। हम क्या कहना चाहते हैं कि सब करो, परंतु बात को समझो कि हकीकत क्या है। भरत राजा ने तेरह सौ रानियों के साथ पूरी जिंदगी निकाली और उसी भव में मोक्ष प्राप्त किया ! तेरह सौ रानियों के साथ !!! इसलिए बात को समझना है। समझकर संसार में रहो, साधु होने की ज़रूरत नहीं है । यदि यह नहीं समझ में आया तो साधु होकर एक कोने में पड़े रहो । साधु तो, जिसे स्त्री के साथ संसार में रास नहीं आता हो, वह बनता है । और स्त्री से दूर रहा जा सकता है या नहीं ऐसी शक्ति साधने के लिए वह एक कसरत है। संसार तो टेस्ट एक्ज़ामिनेशन है। वहाँ टेस्टेड होना है। लोहा भी बगैर टेस्ट किया हुआ नहीं चलता तो मोक्ष में अनटेस्टेड चलता होगा? इसलिए मूर्च्छित होने जैसा यह जगत् नहीं है । मूर्छा के कारण जगत् ऐसा दिखता है । और मार खा-खाकर मर जाते हैं ! भरत राजा की तेरह सौ रानियाँ थीं, तब उनकी क्या दशा हुई होगी ? यहाँ घर में एक रानी हो
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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