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________________ १७६ आप्तवाणी-३ घर तो बगीचा है। सत्युग, त्रेता और द्वापरयुग में घर खेत जैसे होते थे। किसी खेत में केवल गुलाब ही, किसी खेत में केवल चंपा, किसी में केवड़ा, ऐसा था। अब इस कलियुग में खेत नहीं रहे, बगीचे बन गए हैं। इसलिए एक गुलाब, एक मोगरा और एक चमेली! अब आप घर में बुजुर्ग, गुलाब हों और घर में सबको गुलाब बनाना चाहते हो, दूसरे फूलों से कहते हो कि मेरे जैसा क्यों नहीं है। तू तो सफेद है। तेरा सफेद फूल क्यों आया? गुलाबी फूल ला। ऐसे सामनेवाले को मारते रहते हो! अरे! फल को देखना तो सीखो। आपको इतना ही करना है कि यह कैसी प्रकृति है? किस प्रकार का फूल है? फल-फूल आए, तब तक पौधे को देखते रहना है कि यह कैसा पौधा है? मुझमें काँटे हैं और इसमें नहीं हैं। मेरा गुलाब का पौधा है, इसका गुलाब का नहीं है। फिर फूल आएँ, तब आप जानो कि 'ओहोहो! यह तो मोगरा है !' तब उसके साथ मोगरे जैसा व्यवहार रखना चाहिए। चमेली हो तो उस अनुसार वर्तन रखना चाहिए। सामनेवाले की प्रकृति के अनुसार वर्तन रखना चाहिए। पहले तो घर में बूढ़े होते थे तब फिर उनके कहे अनुसार बच्चे चलते थे, बहुएँ चलती थीं। जब कि कलियुग में अलग-अलग प्रकृतियाँ हैं, वे किसी से मेल नहीं खाते, इसलिए इस काल में तो घर में सबकी प्रकृति के स्वभाव के साथ एडजस्ट होकर ही काम लेना चाहिए। वह एडजस्ट नहीं होगा तो रिलेशन बिगड़ जाएँगे। इसीलिए बगीचे को सँभालो और गार्डनर बन जाओ। वाइफ की प्रकृति अलग होती है, बेटों की अलग, बेटियों की अलग-अलग प्रकृति होती हैं। यानी कि हरएक की प्रकृति का लाभ उठाओ। यह तो रिलेटिव संबंध हैं, वाइफ भी रिलेटिव है। अरे! यह देह ही रिलेटिव है न! रिलेटिव मतलब यदि उनके साथ बिगाड़ोगे तो वे अलग हो जाएँगे! किसीको सुधारने की शक्ति इस काल में खत्म हो गई है। इसलिए सुधारने की आशा छोड़ दो, क्योंकि मन-वचन-काया की एकात्मवृत्ति हो तभी सामनेवाला सुधर सकता है, मन में जैसा हो, वैसा वाणी में निकले और वैसा ही वर्तन में हो तभी सामनेवाला सुधरेगा। अभी तो ऐसा है नहीं। घर में हरएक के साथ कैसा व्यवहार रखना है, कि जिससे उसमें नोर्मेलिटी आ सके।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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