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________________ आप्तवाणी-३ तब भगवान ने समझाया था कि, 'सिर्फ केवलज्ञान ही है, अन्य कोई वस्तु नहीं है।' तब गजसुकुमार ने पूछा, 'मुझे केवलज्ञान का अर्थ समझाइए । ' तब भगवानने समझाया, 'केवलज्ञान आकाश जैसा सूक्ष्म है', जब कि अग्नि स्थूल है। वह स्थूल, सूक्ष्म को कभी भी जला नहीं सकेगी। मारो, काटो, जलाओ तो भी खुद के केवलज्ञान स्वरूप पर कुछ भी असर हो सके, ऐसा नहीं है। और जब गजसुकुमार के सिर पर अंगारे धधक रहे थे, तब ‘मैं केवलज्ञान स्वरूप हूँ' ऐसा बोले, तब खोपड़ी फट गई, लेकिन उन पर कुछ भी असर नहीं हुआ ! ९८ बात को समझनी ही है। आत्मा खुद केवलज्ञान स्वरूप ही है। केवलज्ञान को कहीं लेने नहीं जाना है। प्रश्नकर्ता : गजसुकुमार ने सिर पर पगड़ी बँघवाई, उस समय उनकी स्थिति क्या थी? वेदना का असर नहीं हुआ उसका कारण क्या यह था कि उनका लक्ष्य आत्मा में चला गया था ? इसलिए बाहर के भाग में क्या हो रहा है उसकी उन्हें खबर नहीं रही? दादाश्री : वेदना का असर हुआ था। जब रहा नहीं गया, तब भगवान के शब्द याद आए कि अब चलो अपने देश में । असर हुए बगैर आत्मा होम डिपार्टमेन्ट में जाए, ऐसा नहीं है । प्रश्नकर्ता : उस समय लक्ष्य एट अ टाइम दो जगह पर रहता है ? वेदना में और आत्मा में? दादाश्री : शुरूआत में धुँधला रहता है । फिर वेदना में लक्ष्य छोड़ देता है और सिर्फ आत्मा में ही घुस जाता है। जिसे आत्मज्ञान नहीं मिला हो, उसे ऐसी अशाता वेदनीय अधोगति में ले जाती है, और ज्ञानी को तो वह मोक्ष में ले जाती है ! 1 केवलज्ञान स्वरूप कैसा दिखता है? पूरे देह में आकाश जितना ही भाग खुद का दिखता है । सिर्फ आकाश ही दिखता है, अन्य कुछ नहीं दिखता, कोई मूर्त वस्तु उसमें नहीं होती । इस प्रकार धीरे-धीरे अभ्यास करते जाना है। अनादिकाल के अन्-अभ्यास को 'ज्ञानीपुरुष' के कहने से अभ्यास होता जाता है, अभ्यास हुआ अर्थात् शुद्ध हो गया !
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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