SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-३ दादाश्री : यह ज्ञान है ही क्रियाकारी ! ऐसा लाखों वर्षों में कभी हुआ ही नहीं!! प्रश्नकर्ता : पागल आदमी 'मैं समझदार हूँ', ऐसा चिंतवन करे तो वह क्या समझदार हो जाएगा? दादाश्री : हाँ, ऐसा करे तो वह समझदार होता जाएगा। यह तो अंदर असर हो चुका है, साइकोलॉजिकल इफेक्ट्स । हम तो एक भी असर अंदर होने ही नहीं देते। प्रश्नकर्ता : लोग कहते हैं कि 'आप ऐसे हो, आप वैसे हो', तो उसका क्या? दादाश्री : लोग भले ही कुछ भी कहें, लेकिन आप पर उसका असर नहीं होना चाहिए कि 'मैं ऐसा हूँ', आप को तो 'मैं शुद्धात्मा हूँ, मैं शुद्धात्मा हूँ' बस इतना ही रहना चाहिए। आत्मा का कोई भी चिंतवन बेकार नहीं जाता। इतना अच्छा है कि चिंतवन स्थूल स्तर पर ही होता है, इसलिए चल जाता है। उच्च प्रकार के चितवन में एक मिनट में पाँच हजार रिवोल्यूशन होते हैं। हर एक का चिंतवन अलग-अलग होता है, ऐसा अनंत प्रकार का चिंतवन है। इसीलिए तो इस जगत् में तरह-तरह के लोग दिखते हैं न! प्रश्नकर्ता : चिंतवन किसे कहते हैं? दादाश्री : आप ये सब क्रियाएँ करते हो, उसे चिंतवन नहीं कहा जाता। आप सोचते हो उसे नहीं कहते। चिंतवन तो, आपने जो आशय मन में नक्की किया हो, उसे कहते हैं। मन में एक आशय नक्की किया हो कि एक बंगला, एक बगिया, बच्चों को पढ़ाना है-ऐसा सब चिंतवन करे तो वह वैसा बन जाता है। 'रिश्वत के रुपये लेने में कोई हर्ज नहीं है', ऐसा चिंतवन करे तो वह वैसा बन जाता है। यह जो दिखता है, वह जैसा चिंतवन किया था, उसीका फल है। 'जैसा निदिध्यासन करे, आत्मा वैसा ही बन जाता है। कुछ लोग ऐसा चिंतवन करते हैं कि मेरा आत्मा पापी है। तो कौन-से गाँव जाएगा?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy