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________________ आप्तवाणी-२ प्रश्नकर्ता : वह तो क्या पता, दादा! दादाश्री : एक-एक जन्म में भयंकर मार खाई है, लेकिन पिछली खाई हुई मार भूलता जाता है और नयी मार खाता जाता है। पिछले जन्म के बच्चे छोड़कर आता है और नये इस जन्म में गले से लगाता जाता है। 'खुद' की चीज़ हो तो लुटेगी नहीं और जो लुट गया, वह 'खुद' का नहीं है। यह इकलौता बेटा हो, फिर भी नहीं रहता।। इस जगत् में कौन सा व्यक्ति मोह करने जैसा है? ये गंध मारते हैं, उन पर मोह क्या करना? बदबूदार आम पर तो कहीं मोह किया जाता है? सुगंधीवाले लोग तो सत्युग में थे। लेकिन सतयुग का चोकर त्रेता में बचा, त्रेता का चोकर द्वापर में बचा और द्वापर का चोकर इस कलियुग में बचा! यानी निरे कंकड़ (बचा-खुचा माल) जैसे लोग ही बचे हैं इस काल में! उनकी खुराक वैसी, बुद्धि वैसी और विचार भी वैसे। इसमें क्या सुख मिलनेवाला है? इससे तो 'खुद की आत्मा की गुफा' में घुस जा। और बाहर सुपरफल्युअस रह न! इसमें से क्या सुख लेना है, जहाँ सभी कुछ गंध मार रहा है, वहाँ? 'स्वरूप का ज्ञान' नहीं हो तो सब तरफ उमस ही है और 'स्वरूप का ज्ञान' मिल गया तो 'खुद की गुफा' में बैठे रहना है और अन्य जगह नाटकीय रहना है। बहुत अच्छे हों तो हमें फिसला देते हैं। चाय-नाश्ता करवाते हैं, घूमने ले जाते हैं। नहीं है कुछ भी लेना या देना, फिर भी फिसलवा देते हैं। ये सब बही खाते के हिसाब से मिलते हैं। एक पेड़ पर पक्षी बैठे हों और उड़ जाएँ, वैसा है! इसे तो छोड़ ही देना है न कभी न कभी। चक्रवर्ती राजा तेरह सौ रानियाँ, राजपाट और वैभव छोड़कर ज्ञानी के पीछे दौड़े थे और आज एक रानी को भी नहीं छोड़ता। और ऐसे कलियुग के काल में रानी भी कैसी होती है कि सुबह-सुबह इतनी बड़ी सुनाए कि, 'सुबह में किसलिए चाय ढकोसते हो?' यह तो सब भठ्ठी है। शक्करकंद भुनने की जगह, वह है यह संसार। इसमें सुख होता तो अखबारी में रोज़ आता कि फला-फलाँ सेठ
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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