________________
द्वैताद्वैत
द्वैत स्वरूप भी नहीं है और अद्वैत स्वरूप भी नहीं है, वह तो द्वैताद्वैत स्वरूप है।' अगर द्वैत हो जाए तब तो उसे अद्वैत का विकल्प आता रहेगा और अद्वैत स्वरूप हो जाए तो उसे द्वैत का विकल्प होता रहेगा कि, 'यह द्वैत आया और यह अद्वैत आया ।' आत्मा तो द्वैताद्वैत से पर है, फिर भी व्यवहार में कहना हो तो कहूँगा कि, 'आत्मा द्वैताद्वैत है, एकपक्षी नहीं है। रिलेटिव व्यू पोइन्ट से द्वैत है और रियल व्यू पोइन्ट से अद्वैत है।' 'दादा' बात करते हैं तो द्वैत भाव में होते हैं और स्वरूप में हों तो अद्वैतभाव में होते हैं। अतः जब द्वैत होता है, तभी अद्वैत हो सकता है और अद्वैत होता है तभी द्वैत है, क्योंकि दोनों ही रिलेटिव हैं । जब तक आत्मा नहीं जाना तब तक यदि सिर्फ अद्वैत की दुकान ही खोली, तो मारे गए ! इसलिए जान, कुछ विचार कर। द्वैत में पड़ेगा तब भी द्वंद्व खड़े होंगे और अद्वैत में पड़ेगा तब भी द्वंद्व खड़े होंगे। और द्वैताद्वैत में आएगा तो फिर द्वंद्व खड़े नहीं होंगे। जब सिद्धगति में जाता है, तब विशेषण ही नहीं रहता । निर्विशेष ! द्वैताद्वैत तो कब तक है? देह है तब तक ।
४०३
यदि सिर्फ अद्वैत माने तब तो वह एकांतिक बन गया और एकांतिक मतलब मिथ्यात्वी कहलाता है, और द्वैत माने तब भी मिथ्यात्वी है। यह तो एकांतिक नहीं होना चाहिए, द्वैताद्वैत होना चाहिए, अनेकांत होना चाहिए। वीतराग अनेकांतिक थे । एकांतिक मतलब आग्रह किया, मोक्षमार्ग तो निराग्रही का है।
उस अद्वैतवाले से फिर मैंने पूछा, 'तूने शादी नहीं की?' तब उसने कहा, ‘विवाहित हूँ, लेकिन उसे बुलवाता नहीं हूँ ।' 'पत्नी को छोड़ दिया? तुझे कैसा गुरु मिला? विवाह करने के बाद अद्वैत बना? कहाँ से तू ऐसा बन गया?' सच्चा अद्वैत कौन है? स्त्री हो, बच्चे हों, लेकिन किसी को किंचित् मात्र भी दुःख नहीं हो, ऐसा जिसका व्यवहार हो, वह सच्चे द्वैताद्वैत के लक्षण हैं। यह तो सिर्फ अद्वैत की ही गुफा में कहाँ घुस गया? ऐसी स्टेज में गए तो मारे जाओगे! ऐसी सच्ची बात कहनेवाला आपको कोई नहीं मिलेगा, क्योंकि हमें बिल्कुल भी स्वार्थ नहीं है। जो स्वार्थ रहित है वही नग्न सत्य कह सकता है। दूसरे तो स्वार्थ में और स्वार्थ में 'बापजी, बापजी' करेंगे।