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योगेश्वर श्री कृष्ण
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अर्जुन को भयानक रौद्र रूप दिखाया था, सभी को मृत दिखाया था। वह विराट स्वरूप अर्जुन को बताया। एक बार तो अर्जुन घबरा गया। फिर उसे समझ में आ गया, इसलिए वह लड़ने के लिए तैयार हो गया। फिर उन्होंने उसे सौम्य रूप बताया। इस तरह कृष्ण को जो दिखाई दिया था, वही उन्होंने अर्जुन को बताया। उस विराट स्वरूप को हम 'व्यवस्थित' कहते हैं।
जेब कटी तो भी 'व्यवस्थित,' इसलिए फिर उससे कुछ नहीं होता, आगे की वासनाएँ खड़ी नहीं होती, मोह खड़े नहीं होते। भीतर प्रेरणा हुई तो चलने लगना। यह तो सारी मशीनरी कहलाती हैं, 'व्यवस्थित' के चलाने से चलती हैं।
सुदर्शन चक्र प्रश्नकर्ता : कृष्ण का सुदर्शन चक्र, वह क्या था?
दादाश्री : वह तो नेमीनाथ भगवान ने उन्हें सम्यक् दर्शन दिया था, वह ! सुदर्शन मतलब सम्यक् दर्शन, उसके लोगों ने चक्र चित्रित कर दिए! वे लोग ऐसा समझे कि चक्र लोगों को काट डालता है!
एक महाराज ने मुझसे पूछा कि, 'मैंने सुना है कि आप एक घंटे में दिव्यचक्षु देते हैं, वे कैसे होते हैं?' मैंने कहा, 'गाड़ी के पहिये जितने!' अब उन्हें तो क्या कहें? कृष्ण भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते समय जो दिव्यचक्षु पाँच मिनट के लिए दिए थे, वही दिव्यचक्षु हम आपको एक घंटे में ही परमानेन्ट दे देते हैं, उससे आपको 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' दिखता है। 'ज्ञानीपुरुष' आपके अनंतकाल के पापों का पोटला बनाकर भस्मीभूत कर देते हैं,' ऐसा कृष्ण भगवान ने कहा है। सिर्फ पाप जला देते हैं इतना ही नहीं, लेकिन साथ ही साथ उन्हें दिव्यचक्षु देते हैं और स्वरूप का लक्ष्य करवा देते हैं ! इस अक्रम मार्ग के 'ज्ञानीपुरुष' 'न भूतो न भविष्यति' ऐसे प्रत्यक्ष हैं, वे हैं तब तक काम निकाल लो!
वेद, तीन गुणों में ही हैं कृष्ण भगवान ने गीता में कहा है कि, 'वेद तीन गुणों से बाहर नहीं