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आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान
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वे टु सांताक्रुज़' ऐसे गाता रहता है, तो सांताक्रुज़ जाना तो एक तरफ रहा, लेकिन खुद 'सांताक्रुज़ जाने का प्रयत्न कर रहा है, उसका फिर उसे कैफ़ चढ़ता है!
अनंत जन्मों से जीव प्रतिक्रमण को समझा ही नहीं है, पीछे मुड़कर देखा ही नहीं और समझे बिना महावीर भगवान के प्रतिक्रमण गाता रहा है, रिवाज़ बन गया है!
अतिक्रमण के दाग़, निकाले प्रतिक्रमण दादाश्री : यह चाय का दाग़ आपके कपड़े पर गिरे तो आप क्या करते हो?
प्रश्नकर्ता : तुरंत ही धो देता हूँ।
दादाश्री : वहाँ आप कितने सावधान रहते हो? क्योंकि आपको ऐसा लगता है कि दाग़ रह जाएगा, इसलिए तुरंत ही वहाँ पर धो देते हो, लेकिन 'भीतर' दाग़ पड़ जाता है, उसकी खबर ही नहीं! अतिक्रमण मतबल दाग पड़ना, और प्रतिक्रमण मतलब दाग निकालना। जिसे दाग़ नहीं पड़ता उसे प्रतिक्रमण की ज़रूरत नहीं है। 'ज्ञानीपुरुष' को प्रतिक्रमण की ज़रूरत नहीं है।
ये सभी लोग चाय का दाग़ पड़ते ही तुरंत धो आते हैं। वहाँ तो ज़रा सी भी ढील नहीं रखते, वहाँ पर ज्ञानी ज़रा ढीले पड़ जाते हैं, लेकिन ज्ञानी भीतर के दाग़ के सामने ढीले नहीं पड़ते! 'ज्ञानीपुरुष' को दाग़ ही नहीं पडते, क्योंकि खुद गाकर गवाते हैं। जबकि दूसरे तो गवाते हैं लेकिन खुद नहीं गाते। उससे दाग़ पड़ जाता है! यह चाय का दाग़ पड़ जाए और यदि खुद जानता नहीं है कि किससे धुलेगा, तो क्या होगा? दूध में डुबोए तो दूध का दाग़ पड़ेगा और फिर तेल में डुबाकर निकालने जाए तो दाग़ पक्का हो जाएगा! बाहर के सभी लोग अभी कैसा प्रतिक्रमण करते हैं? द्रव्य आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान करते हैं। भाव आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान तो कोई करता ही नहीं! हाँ, चाय का दाग़ पड़ता