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आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान
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पाँच या दस के साथ ही गाढ़ ऋणानुबंध होते हैं। उन्हीं का प्रतिक्रमण करना होता है, उस गाढ़ेपन को ही धोते रहना है। कौन-कौन लेन-देनवाले हैं, उन्हें ढूँढ लेना है। नया खड़ा होगा तो तुरंत ही पता चल जाएगा, लेकिन जो पुराने हैं उन्हें ढूँढ निकालना है। जो-जो नज़दीक के ऋणानुबंधी हैं, वहीं पर अधिक गाढ़ापन होता है। कौन सा फूट निकलता है? जो अधिक गाढ़ा होता है, वही फूट निकलता है।
डायरेक्ट मिश्रचेतन के साथ अतिक्रमण हो गया हो तो तुरंत ही प्रतिक्रमण करो। यदि खाने का कम परोसा तो उससे सामनेवाले को दुःख होगा, वह इनडायरेक्ट अतिक्रमण हुआ, उसे भी प्रतिक्रमण करके धो डालना पड़ेगा। यह आलू की सब्जी चेतन नहीं है, लेकिन उसे लानेवाला चेतन है। वह चेतनवाले को स्पर्श करता है। कोई आलू नहीं खाता हो और आलू की सब्जी भूल से परोस दी हो, तो उससे सामनेवाले को दुःख होगा, लेकिन ऐसा याद नहीं रहा, तो उसे 'उपयोग चूका' कहा जाएगा। और उपयोग चूके, उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा।
प्रश्नकर्ता : कंटाला आता है, वह क्या कहलाता है? वह प्रमाद कहलाता है?
दादाश्री : नहीं, कंटाला आना तो प्रमाद नहीं कहलाता, अरुचि कहलाती है। जिसकी ज़रूरत है, वहाँ पर अरुचि होती हो तो उसका भी प्रतिक्रमण करना पड़ेगा!
प्रश्नकर्ता : दादा, कईं दोष समझ में क्यों नहीं आते?
दादाश्री : लोभ और माया इन दोषों को समझने नहीं देते, लेकिन मान और क्रोध हों तो तुरंत ही दोष दिख जाते हैं। अरे, दूसरे लोग भी वे दोष दिखा देते हैं।
'ज्ञानीपुरुष' के दर्शन से कपट का परदा खिसक जाता है और सभी दिखता जाता है।
आलोचना-प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान होते हैं तो उससे भरी हुई