________________
समर्पण
आधि, व्याधि और उपाधि के इस कलियुगी त्रिविध ताप में भयंकर रूप से तपते हुए, एकमात्र आत्मसमाधि सुख के तृषातुरों की परम तृप्ती के लिए प्रकट परमात्मा स्वरूप स्थित वात्सल्य मूर्ति दादा भगवान के जगत् कल्याण यज्ञ में आहुति स्वरूप परम ऋणीय भाव से समर्पित
आप्त विज्ञापन हे सुज्ञजन ! तेरा ही 'स्वरूप' आज मैं तेरे कर कमलों में आ रहा हूँ ! कृपा करके उसका परम विनय करना ताकि तू अपने आप, अपने ही 'स्व' के परम विनय में रहकर स्व-सुखवाली, पराधीन नहीं ऐसी, स्वतंत्र आप्तता का अनुभव करेगा! ___ यही है सनातन आप्तता, अलौकिक पुरुष की आप्तवाणी की!
यही है सनातन धर्म, अलौकिक आप्तता का!
जय सच्चिदानंद