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अहंकार
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से मरेगा।' सब अपने मतलब में ही होते हैं, सभी मतलबी ही होते हैं, सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' ही मुँह पर साफ कह देते हैं!
जिस अहंकार से पहली बार मिलने पर फूल मिलें, दूसरी बार फूल मिलें, तीसरी बार फूल, ऐसे हर बार फूल ही मिलें तो कहेंगे कि अहंकार सयाना है। लेकिन यह तो शायद पहले आणे में फूल मिलते हैं, लेकिन दूसरी, तीसरी और आठवीं बार में तो 'यू... गेट आउट यूज़लेस' कहते हैं। ऐसा अहंकार किस काम का?
यदि खुद की पोज़िशन टूट रही हो तो साथ में नहीं घूमता कि, 'मेरी क्या क़ीमत?' यह तो घनचक्कर अहंकार कहलाता है। हम में भी ज्ञान से पहले अहंकार था, लेकिन वह सयाना अहंकार, चार-पाँच के हृदय में स्थान था और चार गाड़ियाँ तो घर के पास खड़ी रहती थीं, फिर भी हमें वह अहंकार खटकता था कि, 'यह अहंकार जाए तो हमें पूरी दुनिया का राज्य मिले!' अहंकार तो सुंदर होना चाहिए। यदि देह सुंदर हो और अहंकार कुरूप हो तो किस काम का? देह कुरूप हो तो चलेगा, लेकिन अहंकार कुरूप नहीं चाहिए। कुछ तो चेहरे पर से ही बिल्कुल कुरूप दिखते हैं, लेकिन अहंकार इतना सुंदर लाए होते हैं तो लोग 'आओ साहब, आओ साहब' कहते हैं।
यह अहंकार किसलिए? उसे जीवित ही क्यों रखें? जिसने अनंत जन्मों तक मुश्किल में डाल दिया, वह तो पक्का शत्रु है। पूरी दुनिया का साम्राज्य छोड़कर, 'यह मेरा, यह तुम्हारा,' वह किसलिए? ____ यह अहंकार तो पागल चीज़ कहलाती है, रास्ते में पड़ा हुआ हो, फिर भी नहीं लेना चाहिए! आत्मा में ही रहना चाहिए, आत्मा बनकर ही रहना चाहिए और पागल अहंकार खड़ा होने लगे तो चाँटा मारकर निकाल देना चाहिए।
जहाँ आत्मज्ञान, वहाँ घमंड नहीं कवि ने लिखा है,
'आत्मज्ञान सरळ सीधुं, सहज थये छके नहीं।'