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आप्तवाणी-२
बहुत सारे स्टेशन होते हैं, अंतिम स्टेशन आए तब काम पूरा होता है। कुंडलिनी में सारे चित्त चमत्कार हैं, उसमें आत्मा का कुछ भी नहीं है। जैनों ने कहा है, 'आत्मज्ञान के बिना छुटकारा नहीं है।' वेदांतियों ने भी कहा है, 'आत्मज्ञान के बिना छुटकारा नहीं है।' अनाहद् नाद, वह तो नाद है और नाद तो पौद्गलिक है, उसमें आत्मा नहीं है।
कुछ लोग कहते हैं कि, 'मुझे अंदर कृष्ण भगवान दिखते हैं।' वहाँ आत्मा नहीं है, वह तो चित्त चमत्कार है, उस कृष्ण को देखनेवाला आत्मा है। अंत में दृष्टि दृष्टा में डालनी है, यह तो दृष्टि दृश्य में डालता है। यह अनाहद् नाद है और इन सबमें दृष्टि दृश्य में डालता है। ज्ञान ज्ञाता में आए
और दृष्टि दृष्टा में आए तो काम हो जाएगा। कुछ कहते हैं कि, 'अंतर में कृष्ण भगवान के दर्शन होते हैं।' अरे, योगेश्वर कृष्ण के दर्शन अंतर में होते हैं? वह किस तरह से हो पाएगा? वह तो, जब दिखेंगे तभी न? ये तो दूसरे दिखते हैं, जैसे देखे होते हैं वैसे, फोटोवाले ही न! _ 'हम कौन है?' यह ज्ञान- जब 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह (ऐसे) ज्ञाता में आ जाए, तो उसके बाद फिर विकल्प नहीं रहते। ज्ञान ज्ञाता में नहीं
आ जाए तब तक विकल्प रहते हैं। दृष्टि दृष्टा में नहीं आ जाती, तब तक 'संकल्प' रहता है!