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आप्तवाणी-२
मार्ग में सुदृढ़ मन:पर्याय ज्ञान हो जाता है। यह तो बुद्धि के पर्याय भी देख सकता है, वह भी ज्ञान ही कहलाता है। चित्त को तो अज्ञानी भी देख सकता है। वह तो अशुद्ध चित्त कहलाता है, वह ज्ञान का भाग नहीं है, क्योंकि उसे तो अहंकार भी देख सकता है।
___ यह अक्रम मार्ग है इसलिए मन:पर्याय ज्ञान खड़ा हो गया है! इसीलिए यदि किसी के लिए द्वेष हो रहा हो तो मन:पर्याय ज्ञान से मन
का पता चल जाता है और वहाँ सील किया जा सकता है। जब वह व्यक्ति फिर से मिले, तब जो विस्फोट होनेवाला हो, वह अपने आप रुक जाता है। यदि यह मनःपर्याय ज्ञान न हो, तब तो विस्फोट हो जाएगा। यह तो मन:पर्याय ज्ञान, वह हम दुकान में बैठे हो तब भी हमें पता चलता है कि नगीनभाई के लिए ऐसे पर्याय और लल्लूभाई के लिए ऐसे पर्याय बता रहा है, तो वहाँ पर सावधान रहकर चलना चाहिए। अच्छे-अच्छे साधुओं को, आचार्यों को भी मनःपर्याय ज्ञान नहीं होता है, वे लोग श्रुतज्ञान में ही होते
हैं।
यह तो आपको घंटेभर में ही 'हम' स्वरूप का भान करवा देते हैं, उसी से यह सब सहज प्राप्त हो जाता है, वर्ना लाख जन्मों तक भी ठिकाना पड़े, वैसा नहीं है!