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जगत् - पागलों का हॉस्पिटल
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देता था न तो उसके प्रति भी तिरस्कार रखते थे, शिष्य का आचार थोड़ा कम दिखाई देता था तो उसके प्रति भी तिरस्कार रखते थे, जहाँ-तहाँ तिरस्कार ही करते थे, बहुत बिगड़ गया था यह देश। अभी की प्रजा में जो सुधार होता हुआ दिखाई देता है, उसके कारण पहले के लोगों जैसा बिगाड़ कम होने लगा है। उनमें जो जंगलीपन था वह चला गया और दूसरा जंगलीपन उत्पन्न हुआ। पहले के लोगों को यह पसंद नहीं आया। पुराने ज़माने में तो निरा तिरस्कार ही था। हिन्दुस्तान की दशा बिल्कुल बिगड़ गई थी, जिसे धर्मनिष्ठ भी नहीं कहा जा सकता था। क्योंकि बगैर सोचीसमझी हुई बात थी। आटा अच्छी तरह से गूंधा हुआ था ही नहीं। यों ही अधकचरे आटे के लड्डू बना दिए थे! बस यों ही गूंधे बगैर, अभी ये गूंधे जा (संवर) रहे हैं।
आज के बच्चों में 'ऐसा' दिखाई देता है लेकिन वे संवर रहे (गढ़े जा रहे) हैं। हमेशा ही जब सही देखभाल होती है न, तब ऐसा होता है। अभी आपका बेटा होटल में से बाहर निकले न तो भी उस पर आपको बहुत तिरस्कार नहीं होता है। और पहले तो आप घर जाकर पोइजन लेने लग जाते, या फिर पोइज़न दे देते! अरे, होटल के साथ तेरा क्या झगड़ा है? किस तरह के लोग हो? क्या महावीर ऐसा डिप्रेशन करने को कह गए हैं? वीतराग क्या कहकर गए हैं? अबव नॉर्मल इज़ द पोइजन और बिलो नॉर्मल इज़ द पोइज़न। हर बात में अबव नॉर्मल हो गया था। निरा द्वेष, द्वेष और द्वेष और दुराचार का भी कोई अंत नहीं था। दुराचार इतना अधिक एक्सेस बढ़ गया था कि अत्यधिक दुराचार हो गया था। उसके बजाय तो आज का यह दुराचार अच्छा, यह खुला दुराचार कहलाता है। देश ही पूरा ऐसा हो गया था और उसके कारण ये कष्ट पडे हैं। देश को भयंकर कष्ट पड़ रहे हैं।
कोई स्त्री विधवा हो गई तो उसकी तरफ तिरस्कार, तिरस्कार और तिरस्कार। विधवा का तो जंगली लोग भी तिरस्कार नहीं करते हैं कि बेचारी विधवा हो गई है इसलिए उसके आसपास के सारे अवलंबन टूट गए हैं। अवलंबन टूट गए हैं, इसलिए वह बेचारी हर तरह से दु:खी है। मूलतः