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आप्तवाणी-२
हुआ होगा, तभी यथार्थ फल देगा। ये जो त्रिमंत्र हमारी आज्ञा से बोले, उसके संसार के विघ्न दूर हो जाते हैं, खुद धर्म में रहता और मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है, ऐसा है!
'सर्व साधुभ्याम् नमः' जो बोलते हैं, नवकार मंत्र भी बोलते हैं, लेकिन नवकार आज इस धरती पर है ही नहीं। नवकार तो, हमने जिन्हें स्वरूप का ज्ञान दिया है, वे नवकार में आते हैं। बाकी, नवकार वहाँ, अन्य क्षेत्रों में पहुँचता है। इसलिए नवकार बोलना है। इन्हें नवकार नहीं पहुँचता, क्योंकि वे तो ऐसा समझते हैं कि 'मैं आचार्य हूँ'।
प्रश्नकर्ता : हम मन में नवकार बोलें तो ऑटोमेटिकली पंच परमेष्टि भगवंतों को पहुँच जाता है?
दादाश्री : नवकार ऐसी चीज़ है कि आप जिन्हें पहुँचाना चाहते हो, उन्हें वह पहुँच जाता है!
ये इतने सारे नवकार मंत्र बोलते हैं और लोग कहते हैं कि, 'ये सारी चिंताएँ जाती क्यों नहीं है?' अरे! सच्चे नवकार मंत्र कोई बोलता ही नहीं। ये लोग 'इन्हें' पहुँचाने के लिए मंत्र बोलते हैं, और 'ये' उसके अधिकारी नहीं हैं, 'यह' उनके नाम की चिट्ठी नहीं है। अब उनके नाम की चिट्ठी नहीं हो और उसके ऊपर c/o उपाश्रय करके पोस्ट करें, तब तो कुदरती रूप से उस तक पहुँचता ही नहीं, इसलिए वह डेड लेटर
ऑफिस में जाता है। यानी अपना लेटर बेकार गया और चिंता खड़ी ही रही। हमें ऐसा नक्की करना चाहिए कि हिन्दुस्तान में, अपने देश में, भरतक्षेत्र में जहाँ पर भी सच्चे नवकार हों, वहाँ पर नवकार पहुँचे, यथार्थ साधुओं को, यथार्थ आचार्यों को और यथार्थ उपाध्यायों को पहुँचे। इन तीन लोगों को ही पहुँचाने हैं। सिद्धों और अरिहंतों को तो पहुँचते ही है।
प्रश्नकर्ता : यानी ऐसे ऑटोमैटिकली नवकार पहुँच ही जाता है?
दादाश्री : हाँ, ऑटोमैटिकली पहुँच ही जाता है। अब ये नमो अरिहंताणं बोलते हैं, लेकिन जानते हैं कि वे यहाँ भरतक्षेत्र में हैं नहीं, इसलिए वह फिर वहीं पर पहुँचता है। जहाँ अरिहंत होते हैं वहाँ। और