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आप्तवाणी-२
प्रकट ज्ञानी का सत्संग 'दादा' का यह संग, यह सत्संग तो शुद्धात्मा का संग है, सबसे अंतिम संग यहाँ दिया जाता है। केवलज्ञान के अलावा अन्य कुछ भी नहीं दिया जाता। लेकिन यह काल ऐसा है न कि ३६० डिग्री तक की पूर्णता तक जाने नहीं देता। ज्ञान तो वही का वही है, लेकिन जो प्रवर्तन रहना चाहिए, काल के कारण वह रह नहीं पाता।
इस ज्ञान में हमने जो देखा है, वह हकीकत हमारे पास है। 'ज्ञानीपुरुष' कभी मिल जाएँ, तब जो पूछना हो वह पूछ लेना। तब यदि खुद का काम नहीं निकाल ले तो किस काम का? 'ज्ञानीपुरुष' यानी जिन्हें कुछ भी जानना शेष नहीं है।
सत्संग यानी 'ज्ञानीपुरुष' का व्यवहार देखने के लिए इकट्ठे होना, वही।
प्रश्नकर्ता : क्या मुक्ति के लिए भक्ति करनी चाहिए?
दादाश्री : भक्ति तो यदि मुक्तिमार्ग के साधनों के साथ भक्ति करें तो मुक्ति के लिए साधन मिलते हैं।
जो किसी भी चीज़ का इच्छुक हो, उसका सत्संग मोक्ष के लिए किसी काम का नहीं है, देवगति के लिए ऐसों का सत्संग काम आता है। मोक्ष के लिए तो जो किसी भी चीज़ का इच्छुक नहीं है, उसका सत्संग करना चाहिए।
व्यवस्थित से हमें कह देना है कि, 'सत्संग के लिए राहत देना,' तो वह वैसा कर देगा और अगर हम नहीं कहेंगे तो नहीं करेगा।
भीतर तो अपार सुख छलकता है, लेकिन बाहर तो देखो सुख के लिए लूट मचाते हैं, और वह भी कपट से।
कुछ भी करके सत्संग में ही पड़े रहने जैसा है और नहीं तो घर पर पड़े रहने जैसा है, लेकिन एक क्षण भी कुसंग को छूने जैसा नहीं है। वह तो विष स्वरूप है।