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________________ २१४ आप्तवाणी-२ ही सत्संग में आया जा सकता है। ऐसे काल में यह स्वरूपज्ञान मिल जाए तब तो फिर काम ही निकाल लेना है न! आत्मानुभवी पुरुष कहीं पर हैं ही नहीं और कभी जब ऐसे पुरुष प्रकट हों तब तो काम निकाल ही लेना चाहिए। आत्मानुभवी पुरुष के अलावा अन्य किसी की वाणी दिल को ठंडक देनेवाली नहीं होती है, और होगी भी नहीं! इस वर्ल्ड में यह एक ही रियल सत्संग है और अन्य सभी जगह पर तो रिलेटिव है। और कुछ न कुछ चाहिए ही होता है। वह लक्ष्मी का भिखारी होता है, नहीं तो विषयों का भिखारी होता है, नहीं तो मान या शिष्य बनाने का भिखारी होता है। यदि दुकान पर बोर्ड लगाया हो कि 'क्रोध की दुकान' और वहाँ शांति खोजने जाओ तो दिन बदलेंगे? नहीं बदलेंगे। इसलिए दुकानदार से पहले पूछ लेना और पक्का कर लेना। गुरु जी से कहें कि, 'आप कहें तो छह महीने-बारह महीने बैठे रहने को तैयार हूँ लेकिन यदि मुझे मोक्ष मिल रहा हो तो, मुक्ति मिल रही हो तो, मेरी सारी ही चिंताएँ चली जाएँ तो, वर्ना मैं दूसरी दुकान की खोज करूँ।' अनंत जन्मों से इन तरह-तरह की दुकानों में किश्तें ही जमा करवाते आए हैं न! फिर भी मोक्ष तो मिला ही नहीं। इसलिए गुरु जी से कहें कि, 'यदि मोक्ष दे सकते हैं तो मैं किश्तें जमा करवाऊँ।' ऐसे थोड़ा छेड़ कर देखने में कोई हिंसा नहीं हो जाती। और फिर यदि गुरु जी गुस्से हो जाएँ तो समझ लेना चाहिए कि हमें तुरंत ही जवाब मिल गया! इस दुकान में तो मोक्ष मिले, ऐसा है ही नहीं। फिर भी गुरु जी को खुश करके, सौ-दो सौ रुपये खर्च करके, इतने से ही पूरा हो गया, ऐसा समझकर निकल जाना। सत्संग, वह किसलिए है? सभी के समाधान के लिए, आपके पज़ल सोल्व करने के लिए है। मोक्ष का मार्ग जानने के लिए है! कुसंग, तो दुःख लाता है दो प्रकार के संग : एक कुसंग और दूसरा सत्संग। सत्संग में आने से प्रकाश होता है, जलन बंद कर देता है और कुसंग जलन खड़ी करता है। पटाखे (हवाई का बारूद) हवा में उछालें, तब धोती जलती हैं और
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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