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आप्तवाणी-२
छोड़कर भी यदि बैर मिटता हो तो मिटाओ । किसी भी रास्ते बैर छोड़ो, नहीं तो एक ही व्यक्ति के साथ का बैर भटका देगा ।
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इनको कैसे पहुँच पाएँगे? इन पर तो यदि बंदूकें चलाएँगे तो गोलियाँ व्यर्थ जाएँगी ऐसा है! ऊपर से बैर बंधेगा, वह अलग । एक व्यक्ति के साथ बैर बंधे तो सात जन्म बिगाड़ता है । वह तो ऐसा ही कहेगा कि, 'मुझे तो मोक्ष में नहीं जाना है, लेकिन तुझे भी मैं मोक्ष में नहीं जाने दूँगा!' पार्श्वनाथ भगवान का कमठ के साथ आठ जन्म तक कैसा बैर था? वह बैर, जब भगवान वीतराग हुए, तब जाकर छूटा । कमठ द्वारा किए गए उपसर्ग तो भगवान ही सहन कर सकते थे ! आज के इंसानों के बूते की बात ही नहीं है। पार्श्वनाथ भगवान पर कमठ ने अग्नि बरसाई, बड़े-बड़े पत्थर डाले, मूसलाधार बारिश बरसाई, फिर भी भगवान ने सबकुछ समताभाव से सहन किया और ऊपर से आशीर्वाद दिए और बैर धो डाला।
बिल्ली को जैसे चूहे की सुगंध आती है, वैसे ही बैरियों को एकदूसरे की सुगंध आती है, उन्हें उसमें उपयोग नहीं देना पड़ता। इसी तरह जब पार्श्वनाथ भगवान नीचे ध्यान में बैठे थे, तब कमठ देव ऊपर से (आकाश मार्ग से) जा रहे थे। उन्हें नीचे दृष्टि नहीं डालनी थी फिर भी नीचे पड़ी और फिर तो भगवान पर उपसर्ग किए। बड़े-बड़े पत्थर डाले, अग्नि बरसाई, मूसलाधार वर्षा की, सबकुछ किया । तब धरणेन्द्र देव कि जिनके ऊपर भगवान का पूर्व जन्म का उपकार था, उन्होंने अवधिज्ञान में यह सब देखा और आकर भगवान के सिर पर छत्र बनकर रक्षण किया ! और देवियों ने भी पद्मकमल की रचना करके भगवान को उठा लिया ! और भगवान तो इतना सबकुछ हुआ फिर भी ध्यान में ही रहे! उन्हें घोर उपसर्ग करनेवाले बैरी कमठ के प्रति किंचित् मात्र द्वेष नहीं हुआ और उपकारी धरणेन्द्र देव और देवियों के प्रति किंचित् मात्र राग नहीं हुआ । ऐसे वीतराग पार्श्वनाथ भगवान खुल्ली वीतराग मुद्रा में स्थित दिखते हैं ! उनकी वीतरागता खुल्ली दिखती है ! ग़ज़ब की वीतरागता में रहे थे । चौबीसों तीर्थंकरों की मूर्तियों में वीतराग के दर्शन के लिए पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति ग़ज़ब की है !