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________________ निज दोष १५७ वचन-काया की आदतें और उनके स्वभाव को मैं जानता हूँ और मेरे स्वस्वभाव को भी 'मैं' जानता हूँ।" अब स्वभाव यानी क्या? कि किसी का दस परतोंवाला प्याज़ होता है, किसी का सौ परतोंवाला प्याज़ होता है और किसी का लाख परतोंवाला होता है। मन-वचन-काया की आदतों में परिवर्तन नहीं हो सकता, आदतों का हर्ज नहीं है। आदतों में शायद परिवर्तन नहीं भी हो क्योंकि प्रकृति में परिवर्तन नहीं होता, लेकिन स्वभाव खत्म हो जाता है। जिस ग्रंथि से बीज पड़ता है, वही खत्म हो जाती है। जितनी बार प्रतिक्रमण करते हैं, उतनी परतें उखड़ जाती हैं। प्रतिक्रमण किया मतलब परतें उखडेंगी ही। 'दादा' की हाज़िरी में आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान करने चाहिए ताकि दोष धुल जाएँ और यदि फिर से भूलें हों तो फिर से प्रतिक्रमण करना। फिर भी जगत् के लोग कहेंगे कि, 'बार-बार वही के वही कर्म करता है और बार-बार प्रतिक्रमण करता है।' हाँ, इसी का नाम संसार है। लाल झंडी - ठहरो ___कोई हमारे सामने लाल झंडी दिखाए तो वह हमारी भूल है। जगत् टेढ़ा नहीं है। अपने दोष के कारण वह लाल झंडी दिखाता है। इसलिए हम पूछते हैं कि, 'भाई, हमारी क्या भूल हुई है?' तब यदि वह कहे कि, 'यह आप दस दिन बाद जानेवाले थे और आज सातवें दिन क्यों जा रहे हैं?' तब हम खुलासा करते हैं, फिर जब वे हरी झंडी दिखाएँ उसके बाद ही हम आगे जाते हैं। भूल को भूल कहकर मिटानी तो पड़ेगी ही न? वह भूल यदि सामनेवाला नहीं मिटाए तो हमें ही मिटानी पड़ेगी न? हमें कोई लाल झंडी नहीं दिखाता और कभी दिखाए तो हम पूछते हैं कि, 'क्या हुआ है? क्यों लाल झंडी दिखा रहा है?' लोग तो, यदि कोई लाल झंडी दिखाए तब शोर मचा देते हैं, 'अरे! तू क्या जंगली है? उल्टा क्यों कर रहा है?' यह लाल झंडी दिखाई मतलब, देयर इज़ समथिंग। हमें तो छोटा बच्चा भी डाँट सकता है। जगत् के लोग लाल झंडी दिखानेवाले से कहते हैं, 'तुझमें यह नहीं है और तू ऐसा है, तू बेअक्ल है।' और ये तो बड़े अक़्ल के बोरे, बेचने जाएँ तो चार आने भी नहीं मिलें। हम में पहले से
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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