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आप्तवाणी-२
चोर मिल जाता है। लेकिन यदि पुलिसवाला कहे कि, 'चोर पकड़ने नहीं जाना है, उसे तो जब वह आएगा तब पकड़ेंगे।' तब फिर चोर मज़े करेगा ही न? ये भूलें तो छुपकर बैठी हैं। उन्हें ढूँढें तो तुरंत ही पकड़ में आती जाती हैं।
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सारी कमाई का फल क्या है? आपके दोष एक के बाद एक आपको दिखें, तभी कमाई की कहलाएगी। यह सारा ही सत्संग खुद को खुद के सभी दोष दिखें, उसके लिए है । और खुद के दोष दिखें, तभी वे दोष जाएँगे। दोष कब दिखेंगे? जब खुद 'स्वयं' हो जाएगा, 'स्वस्वरूप' हो जाएगा, तब। जिसे खुद के दोष ज़्यादा दिखें, वह ऊँचा । जब संपूर्ण निष्पक्षपातीपन आए, इस देह के लिए, वाणी के लिए, वर्तन के लिए संपूर्ण निष्पक्षपातीपन उत्पन्न होता है तभी खुद, खुद के सभी दोष देख सकता है।
क्रमिकमार्ग में तो कभी भी खुद के दोष खुद को दिखते ही नहीं । ‘दोष तो अनेक हैं, लेकिन हमें दिखते नहीं हैं, ' ऐसा यदि कहे तो मैं मानूँ कि तू मोक्ष का अधिकारी है, लेकिन जो ऐसा कहे कि, 'मुझमें दो-चार ही दिखते हैं,' वह अनंत दोषों से भरा हुआ है और कहता है कि दोचार ही हैं। तो तुझे दो-चार दोष ही दिखते हैं, यानी तुझमें इतने ही दोष हैं, क्या तू ऐसा मानता है ?
महावीर भगवान के मार्ग को प्राप्त कर लिया, ऐसा कब कहलाएगा? जब रोज़ खुद के सौ-सौ दोष दिखें, रोज़ सौ-सौ प्रतिक्रमण होने लगें, उसके बाद महावीर भगवान के मार्ग में गया कहा जाएगा। 'स्वरूप का ज्ञान' तो अभी उसके बाद कितनी ही दूर है । लेकिन यह तो चार पुस्तकें पढ़कर 'स्वरूप' पाने का कैफ लेकर घूमता है। इसे तो 'स्वरूप' का एक छींटा भी प्राप्त किया है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। जहाँ 'ज्ञान' अटका है, वहाँ कैफ ही बढ़ता है। कैफ के कारण ज्ञानावरण और दर्शनावरण का हटना रुक गया है। मोक्ष में जाने के लिए मात्र तेरी आड़ाई ( अहंकार का टेढ़ापन) ही बाधक है, दूसरी एक भी चीज़ बाधक नहीं है। सबसे बड़े भयस्थान ये स्वच्छंद और कैफ हैं !