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धर्मध्यान
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स्वास्थ्य लुट गया, ब्लड प्रेशर हो गया। हार्ट फेल की तैयारियाँ चल रही हैं! तुझे कौन ऐसे गुरु मिले कि सिर्फ लक्ष्मी के-पैसों के पीछे पड़, ऐसा सिखलाया?
__इन्हें कोई गुरु नहीं मिले तो लोकसंज्ञा, वही उनकी गुरु होती है। लोकसंज्ञा मतलब लोगों ने पैसों में सुख माना, वह लोकसंज्ञा। लोकसंज्ञा से यह रोग दाखिल हो गया तब कौन सी संज्ञा से यह रोग निकले? तब भगवान कहते हैं कि, 'ज्ञानी की संज्ञा से यह रोग निकलेगा। लोकसंज्ञा से दाखिल हुआ रोग ज्ञानी की संज्ञा से निकल जाता है।'
यानी कि कहना चाहते हैं कि यह नहाने के पानी के लिए या रात को सोने के बिस्तर के लिए या दूसरी कितनी ही चीज़ों के लिए आप सोचते तक नहीं फिर भी, क्या वह आपको नहीं मिलतीं? वैसे ही लक्ष्मी के लिए भी सहज रहना चाहिए।
हम ज्ञानी लोग यह कैसा हिसाब निकालते होंगे? यह जगत् किस तरह चलता है, उसका किसी को भान ही नहीं है। किसी लड़के के मित्र को दाढ़ी ही नहीं उग रही हो तो उस लड़के को वहम हो जाता है कि, 'मझे दाढी नहीं उगेगी तो मैं क्या करूँगा?' उसी तरह यह जगत् वहम करने जैसा नहीं है। किसी की नहीं उगे तो इट इज अ डिफरन्ट मेटर, लेकिन तेरी तो उगेगी ही। हर एक व्यक्ति को दाढ़ी तो उगती ही है। अगर किसी को नहीं उगे, तो वह तो कुदरत का एक आश्चर्य है!
अरे! पैसे कमानेवाला क्या तू है? तो वह ऐसा है कि, 'अवश्य कमानेवाला है और खोनेवाला भी वही है।' उन दोनों की तेरे हाथ में सत्ता नहीं है। बिना काम के ध्यान किसलिए बिगाड़ता है? ये पैसे तो पूरणगलन होते हैं। वह सब कुदरत की सत्ता है। यानी पूरण होते हैं, लाख रुपये कमाता है वह कुदरत की सत्ता है और लाख का नुकसान होता है, वह भी कुदरत की सत्ता है। वह सत्ता आपकी नहीं है, वहाँ किसलिए हाथ डालते हो?
आरोपित भाव से जो जो करता है वह बंधन है, और तब तक