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मूर्ति में यथार्थ प्राणप्रतिष्ठा कौन कर सकता है? सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' ही यथार्थ प्राणप्रतिष्ठा कर सकते हैं। - मोक्ष में जाने के दो मार्ग हैं : एक क्रमिक मार्ग और दूसरा अक्रम मार्ग। यह अक्रम मार्ग, वह अपवाद मार्ग है, आश्चर्य मार्ग है! हर दस लाख साल में एकाध बार प्रकट होता है! ऋषभदेव भगवान से सिर्फ भरत चक्रवर्ती को जो प्राप्त हुआ था, वही अक्रम मार्ग आज दादाश्री के पास प्रकट हुआ है और वह अनेक पुण्यशालियों को प्राप्त हुआ है! अक्रम किसलिए? वह इसलिए कि जिस आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए चक्रवर्ती जैसों को भी राजपाट, बीवी-बच्चे छोड़कर जंगल में सद्गुरु के पीछे चले जाना पड़ता था, फिर भी उनका ठिकाना पड़ेगा या नहीं उसका कोई ठिकाना नहीं होता था, यह मार्ग ऐसे कष्टदायी क्रमिक मार्ग जैसा नहीं है। यह तो अक्रम! जो 'ज्ञानीपुरुष' की कृपादृष्टि प्राप्त कर जाए, वह एक घंटे में ही संपूर्ण आत्मज्ञान प्राप्त कर जाता है! और फिर ग्रहण-त्याग के लिए स्थान ही नहीं रहता। ग्रहण-त्याग रूपी साधन, साध्य वस्तु अर्थात् आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद गैरज़रूरी बन जाते हैं। फिर तो ज्ञानी की आज्ञा, वही धर्म और आज्ञा, वही तप। भगवान महावीर ने भी ऐसा ही कहा है, 'आणाए धम्मो आणाए तप्पो।' और अक्रम मार्ग की आज्ञाएँ केवल पाँच ही हैं और वे ऐसी हैं कि जो संसार व्यवहार में ज़रा सी भी बाधक नहीं होती। बल्कि संसार व्यवहार में भी अत्यंत उपयोगी ‘मास्टर की' समान बन जाती है, इस जगत् का ऐसा कोई ताला नहीं कि जो इससे न खुल सके!
हालांकि यह ऐसी बात है जो मानने में नहीं आए। इसके बावजूद, यह हकीकत है, इसमें दो मत नहीं। क्योंकि अनेक पुण्यशालियों ने दादाश्री से घंटेभर में ही 'स्वरूप ज्ञान' की प्राप्ति की है और अनुभव किया है। उसके बाद एक क्षण के लिए भी 'खुद के स्वरूप' का लक्ष्य नहीं चूकते, ऐसा अनेकों का अनुभव है। 'दिस इज़ द ओन्ली केश बैंक इन द वर्ल्ड !' इस बैंक में जिसे जो चेक डालना हो, वह डाल सकता है, लेकिन 'संपूर्ण' रूप से समझकर डाले। क्योंकि ठेठ मोक्ष प्राप्ति तक का चेक पास हो सके, ऐसा है। फिर कहीं संसार की विनाशी चीज़ में मूर्छित होकर अविनाशी पद खो न बैठे!
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