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'नो लॉ' - लॉ
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है। बगैर कानूनवाली में हर एक स्वेच्छा से नियम का पालन करता है। बगैर कानूनवाली में कुदरती रूप से ही नियमों का पालन होता है।
सरकार ने नियम बनाए, लोगों ने नियम बनाए, समाज ने नियम बनाए और नियमों के चंगुल में आ गए सभी। धर्म में तो नियम होने ही नहीं चाहिए। नियमों के चंगुल में आया तो काले कपड़ेवालों के बीच फँसेंगा। काले कपड़े इटसेल्फ क्या कहते हैं कि हम तो अपशकुनवाले
___ एक दिन दुनिया को नियम छोड़ देने पड़ेंगे! ‘नो कोर्ट'। इन कोर्टो से ही तो बिगड़ा है सब! काले कपड़े! नियम एक्सेस (आवश्यकता से अधिक) हो गए इसलिए पोइज़न हो गया। नियम तो तरीकेवाला होता है। और धर्म में तो नियम होते ही नहीं। लेकिन तू जैन कैसा? तू वैष्णव कैसा? तेरा डेवेलपमेन्ट कैसा? यदि तू मूर्ख है तो तेरे लिए नियमों की ज़रूरत है और यदि तू डेवेलप्ड है तो तुझे नियमों की ज़रूरत नहीं है। जैन को नियमों की ज़रूरत ही नहीं है। उसे तो भीतर से ही सभी नियम दिखते हैं! अपने यहाँ नियम के बगैर सब चलने दिया है। और जिसे जैसे ठीक लगे वैसे चलने दिया है और हर एक को सभी छूट दी है।
हम सब ३८ दिन की यात्रा पर गए थे, वहाँ भी हमारे तो 'नो लॉज़।' उसमें फिर ऐसा नहीं कि किसी के साथ लड़ना नहीं है। जिसके साथ लड़ना हो उसके साथ लड़ने की छूट। लेकिन लड़ने की छूट देनी है, ऐसा भी नहीं और नहीं देनी ऐसा भी नहीं। वे यदि लड़ें तो 'हम' देखते थे। रात को वापस सभी हमारी' साक्षी में प्रतिक्रमण से धो डालते थे। आमने-सामने दाग़ पड़ते थे और वापस सब धो डालते! यह प्योर वीतराग मार्ग है, इसलिए यहाँ केश (नकद) प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। इसमें पाक्षिक या मासिक प्रतिक्रमण नहीं होते। दोष हुआ कि तुरंत ही प्रतिक्रमण। यदि नियम हो तो मुँह से नहीं बोलते लेकिन अंदर उथलपुथल रहती है। अंदर उलझता रहता है। अपने यहाँ तो नियम ही नहीं है। ऐसा है यह अक्रम ज्ञान ! हम है तब तक छूट दी हुई है, इसलिए नियम-वियम नहीं।