________________ विभाग नमस्कार स्वाध्याय कंचण तिण मणि लिठ्ठ पवर जे मणि समु धारहिं, समितिं गुत्ति-दय-दाण धम्मु निम्मलु परिपालहिं / विजय बतीसि जि मुणि विदेहि पण भारहि सिवकर, पण व एरवइ जि तवनिहाण वंदहु भत्तिब्भर // 4 // ( ठवणि ) पढमु पणमउं पणमउं सयल अरहंत तयणंतरु,सिद्धवर सूरि गुणउं गुणउं गुण विविह संठिय / आगमनिहि उवज्झाय तह, साहु नमउं तव धण महिड्डिय / सिव-मंगल-कल्लाणकर जो सुमरइ सुवियाणु, सो परमिट्ठिहि फलि लहइ निच्छइ अमरविमाणु // 5 // ( घत्ता ) रोग हरणु दुहसय दलणु सयल समीहिय रिद्धि पयारु। नर-सुर-सिव सुह इटकरु भवियहु सुहं सुमरुहु मणु नवकारु // 6 // मृमिसयण बंभवय कलिउं गुणई जु विहिसउं लक्खु नवकारु / अरहंतपउ सो नरु लहइ महहिं सुरासुर विविहपयार(रु) // 7 // वाळा, अप्रमत्त, चारित्रथी युक्त, क्षमालक्ष्मीना प्रियतम, कंचन, तृण, रत्न-माटीन डे' वगेरेने जेओ सम रीते धारे छे, समिति-गुप्ति-दया-दान वगैरे निर्मल धर्मने जेओ उत्तम रीते पाळे छे, बत्रीस विजयो (प्रदेशो) वाळा विदेहक्षेत्रमां, पांच भरतमां, पांच ऐरवतमा रहेला अने तपना निधान एका मुनिओने ( साधुओने ) श्रेष्ठ भक्तिथी वंदन करो / / 3-4 // ___ प्रथम सकल अरिहंतोने प्रणाम करो, प्रणाम करो। ते पछी विविध गुणोवाला श्रेष्ठ सिद्धो तथा आचार्योनुं गुणन ( स्मरण ) करो, गुणन करो / आगमोना निधान उपाध्यायो तथा तपधनरूप महाऋद्धिवाला साधुओने नमस्कार करो / शिव-मंगल-कल्याणने करनार परमेष्ठिओ, जे विधिपूर्वक स्मरण करे छे, ते फलरूपे भवांतरमा अवश्य देवविमान (वैमानिक देवगति ) पामे // 5 // ___ हे भव्यो ! रोगने हरनार, सेंकडो दुःखोने दळनार, सर्व समीहित तथा ऋद्धिओने आपनार, मनुष्यो-देवोनां सुखो तथा मोक्ष सुखने आपनार अने इष्टने करनार नवकारनुं सुखेथी मनमां स्मरण करो // 6 // ___ भूमिशयन-ब्रह्मचर्यव्रत सहित जे विधिपूर्वक लाख नवकार गणे ते मनुष्य अरिहंतपद पामे छे तथा देवताओ असुरोथी विविध प्रकारे पूजाय छे // 7 //