SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (89) कहा जाता है। इन भूमियों की मान्यता में बौद्ध धर्म के संप्रदायों में विभिन्न मत है। हीनयान इस हेतु भूमियों को, तो महायान इस विकास में दस भूमियों को बुद्धत्व प्राप्ति के लिए स्वीकार करते हैं। बौद्ध धर्म में जिन प्राणियों का विकास प्रारम्भ नहीं हुआ उनको पृथक्जन या मिथ्यादृष्टि कहा जाता है तथा जो विकासोन्मुख हैं, वे आर्य-सम्यथ्य दृष्टि कहलाते हैं। मज्झिमनिकाय में इस अवस्था या भूमि को धर्मानुसारी या श्रद्धानुसारी भूमि कहा गया है। निर्वाणमार्ग के साधक को अर्हत् पद प्राप्त करने के लिए चार भूमिकाओं को पार करना होता है। ये चार भूमिका है 1. स्रोतापन्न भूमि 2. सकृदागामी भूमि 3. अनागामी भूमि 4. अर्हत् भूमि 1. स्रोतापन्न भूमि स्रोतापन्न का शाब्दिक अर्थ है 'प्रवाह-धारा में पड़ा हुआ, यह प्रवाह निर्वाणगामी है। जब साधक संसार से विरक्त होकर, निर्वाणगामी मार्ग पर आरूढ़ होता है तब वह स्रोतापन कहलाता है। वह इस मार्ग में 1. सत्काय दृष्टि-देहात्मबुद्धि,2. विचिकित्सा संदेहात्मकता 3. शीलव्रत परामर्श-व्रतादि क्रियाकांडों में रूचि इन तीन संयोजनों का त्याग कर देता है तथा वह चार अंगों में अविचल श्रद्धा युक्त होता है 1. बुद्धानुस्मृति 2. धर्मानुस्मृति 3. संघानुस्मृति 4. शील समाधि से युक्त इस प्रकार स्रोतापन्न साधक के हृदयपटल में बुद्ध, धर्म, और संघ के प्रति अटूट श्रद्धा होती है। साथ ही उसके आचार-विचार की विशुद्धि परिपूर्ण होती है। वह अधिक से अधिक सात जन्मों में निर्वाण प्राप्त कर लेता है। 1. मज्झिम निकाय प्रथम भाग 6.1.3 पृ. 45, बुद्धचरितः धर्मानंदकौसंबी पृ. 111-112, 254 256, बौद्ध दर्शन (पं. उपाध्याय बलदेव) पृ. 140 2. दीघनिकाय पृ. 57-58, 288 उद्धृतः बौद्धदर्शन पृ. 141
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy