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________________ (83) ही संपादन कर सकते हैं-अन्य अर्हत् नहीं। जैन परंपरा में घाति कर्म क्षय एवं कैवल्य लाभ आदि से संयुक्त अर्हत् एवं सामान्य केवली की समानता का उल्लेख किया गया है किन्तु बौद्ध परंपरा में इस तुल्यबलता को दर्शाया नहीं गया। बुद्ध का अर्हत् होना सर्वत्र दृष्टिगत होता है किंतु अर्हत् और बुद्ध की ज्ञान सीमा की समानता या विषमता का उल्लेख दृष्टिगत नहीं होता। बुद्ध के जन्म सम्बन्धी विलक्षणताएं बुद्धके जन्म संबंधित अलौकिकता का वर्णन दीधनिकाय के महापदान सुत्त में उल्लिखित किया है- 1. तुषित नामक देवलोक से च्युत हो स्मृतिमान जागृत होकर माता के उदर में प्रविष्ट होते हैं। ____ 2. जब माता के गर्भ में प्रवेश करते हैं, तब समस्त लोक में विपुल प्रकाश होता है तथा लोक धातु (ब्रह्माण्ड) में कम्पन होता है। 3. माता के गर्भ में होने के पश्चात् सदैव चार देवपुत्र चारों दिशाओं में माता की रक्षा के लिए रहते हैं, ताकि उनकी माता को कोई भी कष्ट न दें। 4.जब से वे माता के गर्भ में आते हैं, तब से उनकी माता शीलवती होती है, वह हिंसा, चोरी, दुराचार, मिथ्याभाषण तथा मादक वस्तुओं के सेवन से विरत रहती है। ___5. उनकी माता का चित्त पुरुष की ओर आकृष्ट नहीं होता। कामवासना के लिए उनकी माता पुरुष के राग से जीती नहीं जा सकती। 6. उनके गर्भ में आने के पश्चात् उनकी माता को सभी प्रकार के सुखोपभोग उपलब्ध रहते हैं। 7. उनकी माता को कोई व्याधि नहीं होती तथा बोधिसत्त्व की माता उनको अपने उदर में स्पष्ट देखती है। 8. उनकी माता उनके जन्म के सात दिन बाद मरकर तुषित देवलोक में उत्पन्न होती है। 9. माता पूरे दस माह कुक्षि में रखकर प्रसव करती है। दस माह से पहले नहीं करती। 1. दीघ निकाय भाग-२, महापदानसुत्त 1.4.20 पृ. 15-16
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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