SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (64) वचनातिशय जैनागमों में पैतीस वचनातिशयों के उल्लेख मिलते हैं। संस्कृत टीकाकारों ने प्रकारान्तर से ग्रन्थों में प्रतिपादित वचन के पैंतीस गुणों का उल्लेख किया है। समवाय अंग में इसका उल्लेख किया जा चुका है। अतिशय अनन्त भी कहे जा सकते हैंजिस प्रकार निशीथ चूर्णि नामक ग्रन्थ में अर्हत् भगवन् के 1008 बाह्य लक्षणों को उपलक्षण मानकर सत्त्वादि अन्तरङ्ग लक्षणों को अनंत कहा गया है, उसी प्रकार उपलक्षण से अतिशयों को परिमित मानकर भी उनको अनन्त कहा जा सकता है। इसमें कोई शास्त्र विरोध नहीं है। ऐसा स्याद्वाद मंजरी नामक ग्रन्थ में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। (द) निर्दोष व्यक्तित्व जैन परम्परा अर्हत् परमेष्ठी को अट्ठारह दूषणों से रहित मान्य करती है। ये दोष निम्न हैं-1. दानान्तराय, 2. लाभान्तराय, 3. वीर्यान्तराय, 4. भोगान्तराय,5. उपभोगान्तराय, 6.मिथ्यात्व,7. अज्ञान, 8. अविरति,9. कामेच्छा, 10. हास्य, 11. रति, 12. अरति, 13.शोक, 14.भय, 15. जुगुप्सा, 16. राग, 17. द्वेष, 18. निद्रा। श्वेताम्बर परम्परा में प्रकारान्तर से उन्हें निम्न 18 दोषों से रहित भी कहा है 1.हिंसा, 2. मृषावाद, 3. चोरी, 4. कामक्रीड़ा, 5. हास्य, 6.रति,7. अरति, 8. शोक, 9. भय, 10. क्रोध, 11. मान, 12. माया, 13. लोभ, 14. मद, 15. मत्सर, 16. अज्ञान, 17. निद्रा, 18. प्रेम। __ श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में अर्हत् को जिन दोषों से रहित माना गया है, उसमें मूलभूत अन्तर यह है कि दिगम्बर परंपरा अर्हत् के कवलाहार (भोजनग्रहण) का निषेध करती है, वहाँ श्वेताम्बर परम्परा नहीं। इसीलिए वहाँ क्षुधा और तृषा का अभाव स्वीकार किया गया, श्वेताम्बर परम्परा में नहीं है। अर्हत् पद की योग्यता में हेतु अर्हत् पद प्राप्ति के लिए जीव को वर्तमान जन्म से पूर्व के तृतीय भव (जन्म) में विशिष्ट साधना करनी पड़ती है। जैनागमों में अर्हत् पद प्राप्ति के लिए 1. पणतीसं सच्चवयणाइसेसां पण्णता-समवाय 35 2. स्याद्वाद मंजरी 18/4 3. राजेन्द्रअभिधान कोश पृ. 2248
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy