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________________ (50) 6. आप्त, स्याद्वादी, बोधिद्, सार्व आत्महितोपदेशक होने से आप्त तथा अनेकान्तमय उनके वचन है अतः स्याद्वादी, बोधि अर्थात् जिन धर्म की प्राप्ति एवं उसके दाता होने से बोधिद तथा समस्त प्राणियों के हितकारी होने से सार्व-सर्वीय आदि संज्ञाओं से अभिप्रेत किया जाता है। 7.शम्भु, स्वयंभू, पुरुषोत्तम__ शाश्वत सुख के स्वामी हैं अतः शम्भु, स्वयं ही अपनी आत्मा के तथाभव्यत्वादि सामग्री के परिपाक होने से स्वयंभू तथा पुरुषों में उत्तम अर्थात् तथा भव्यत्व आदि भावों से श्रेष्ठ होने से पुरुषोत्तम हैं। 8. पारगत___ संसार के प्रयोजनों से पार हो चुके हैं अथवा जो संसार के पर्यन्त-पार जा चुके हैं, अतः पारगत हैं। यहाँ विकास क्रम के अनुसार प्राणिमात्र में अभयवृत्ति को देने वाले हैं, आत्म स्वास्थ्य के, आत्म स्वरूप के प्रदाता होने से विश्वत्सलता का उदय होता है। मैत्री भावना का पूर्णतः समावेश होने से अभयद कहा गया है। इस अभय दान वृत्ति के माध्यम से अष्टकर्मों का समूलोच्छेद कर देने के फलस्वरूप क्षीणाष्ट कर्मा कहा गया है। कर्मों के विजेता होने से जिन, जिनेश्वर, वीतराग पद पर आरूढ़ हुए हैं। कर्म राशि समाप्त हो चुकी है। अतः 'केवली' त्रिकालवित् से उनको अलंकृत किया है। ज्ञाता द्रष्टा होने से सर्व द्रव्य, गुण, पर्याय, कालभाव के ज्ञाता, द्रष्टा, संघ की स्थापना करके तीर्थकर, अत्यन्त पूजनीय होने से भगवान्, जगत्प्रभु, परमेष्ठी, अधीश्वर देवाधिदेव कहलाये। फलस्वरूप उनके वचन सर्व हितकारी, यथार्थ होने से सद् धर्म की प्राप्ति में सहायक होने से बोधिद कहा गया। सद्धर्म की प्राप्ति सर्व सुखों में सर्वोत्कृष्ट है। उन्होंने स्वयं ने ही इस श्रेष्ठ स्थिति को प्राप्त की है अतः स्वयंभू एवं पुरुषोत्तम संज्ञा पाई है। इस प्रकार संसार के सर्व प्रयोजनों से मुक्त होकर संसार के पर्यन्त जा पहुँचे हैं। __प्राणिमात्र को अभय जिनका मूल है उस वटवृक्ष के फल, परिणाम पारगत है। इन सर्व पर्यायों से अर्हत् परमेष्ठी को अभिहित किया गया है। यद्यपि आगमों में यत्र तत्र उल्लेख मिलता है, तथापि जिन, केवली सर्वज्ञ, वीतराग भगवान आदि पर्यायों का उल्लेख विशेषतः आगमों में दृष्टिगत होता है।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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