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________________ (47) श्री हेमचन्द्राचार्य ने अर्हत् के हार्द को पूर्णरूपेण विकसित किया है। अर्हम् अक्षर परमेष्ठी परमेश्वर का वाचक है। अर्ह पूजा अर्थक है। जो अष्टप्रातिहार्य से संयुक्त है उसको द्योतित करती है। पुनः कहते हैं कि 'अः' यह उणादि सूत्र का 'अ' है, जिस परं अनुनासिक कला बिन्दु है। अथवा मान्त होने से इसे अव्यय भी कहा गया है। इस प्रकार अव्यय स्वरूप होने से यह अर्ह अक्षर-पद परमेश्वर जगन्नाथ एक ही परमेष्ठी अर्हद् भगवन्त का वाचक है। तात्पर्य यह है कि 'अर्ह' होने से ही अर्हत् का ध्यान किया जाता है। ___ पुनः शंका करते हैं कि अर्हं वर्गों का समुदाय है, तो किस प्रकार अक्षर कहा गया है? समाधान है कि जिसका स्वरूपता क्षर नहीं होता, न स्वरूप से चलायमान होता है, अतः इसे अक्षर कहा गया है। इस प्रकार इस बृहवृत्ति-मध्यमवृत्ति में हेमचन्द्राचार्य ने अर्ह अक्षर-पद की पूजा अर्थ में व्युत्पत्ति करने के पश्चात् अर्ह को अर्हद् स्वरूप में स्थिर कर दिया। अभिप्राय यह है कि जहाँ पूर्वाचार्यों ने इस अर्ह धातु को पूजा अर्थ में प्रयुक्त करके समग्रता को इसमें निबद्ध कर दिया था, वहाँ हेमचन्द्राचार्य ने इस अर्हद् पद को अष्टप्रातिहार्य, परमेश्वर, परमेष्ठी का वाचक सिद्ध करके इसे सिद्धचक का आदि बीज, सकलागम, उपनिषद्भूत, अशेषविघ्न का विघातक, निखिल दष्टादृष्ट फल-संकल्प का प्रदाता कल्पद्रुम के रूप में व्यवस्थित कर दिया। यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो ब्राह्मण परम्परा के ग्रन्थों में सर्वप्रथम इसे प्रशंसा परक अर्थ में ग्रहण किया गया। किन्तु श्रमण परम्परा के प्रारम्भ में पूजा अर्थ में ग्रहण करके शनैः शनैः अर्हद् परमेष्ठी स्वरूप में जाकर यह अर्थ व्यवस्थित कर लिया गया। यद्यपि महर्षि पाणिनी ने अर्ह धातु को प्रशंसा अर्थ में ग्रहण किया है, किन्तु जब वेदों में यह प्रयोग देखते है तो ज्ञात होता है कि वहाँ भी अग्नि, इन्द्र, रूद्र आदि विशिष्ट देवता के रूप में ग्राह्य होकर पूजा अर्थ में ग्रहण किया गया। सायणाचार्य ने भी अर्हत् को पूजा अर्थ में, योग्य अर्थ में ग्रहण किया है। पश्चात्वर्ती ब्राह्मण साहित्य में पूजापरक अर्थ में इसे प्रयोग किया है। पूजा, योग्य, स्तुति आदि समानार्थक ही है। मनुस्मृति, गीता, रामायण, विष्णुपुराण, भागवतपुराण, रघुवंश आदि सर्व धर्म ग्रन्थों में इसे ईश्वर, शक्र, पूजनीय, विष्णु, हरि के विशेषण रूप में उपादेय माना है। 1. सिद्धहेमशब्दानुशासन-बृहवृत्ति 1.1.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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