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________________ (348) अप्रकट शक्तियाँ भी कार्य करती हैं। वे हैं- मंत्र योजक के मनोभाव, लोकोपकारक वृत्ति, तपोबल तथा मन्त्र साधक का मन्त्र शक्ति के प्रति अखण्ड विश्वास, निश्छल सद्भाव और निर्मल सदाशयता। परमेष्ठी-नमस्कार में उक्त सभी विशेषताओं का समवेत समायोजन होने के कारण इसकी शक्ति एवं शुचिता अनुपम है। जो मन का त्राण करे वह है महामन्त्र। जगत्व्यापी अशुभ विचारों के प्रभाव से मन को नियन्त्रित-सुरक्षित रखने की शक्ति परमेष्ठी नमस्कार में होने से वह महामन्त्र है, क्योंकि इससे किसी का अनिष्ट न होकर सभी का इष्ट और कल्याण होता है। इस महामन्त्र के चार प्रसिद्ध नाम है। 1. आगमिक-श्री पंचमंगल महाश्रुतस्कंध, जो महानिशीथ आदि आगम शास्त्रों में मिलता है। 2. सैद्धान्तिक- श्री पंच परमेष्ठी-नमस्कार महामन्त्रः जो आगमेतर ग्रन्थों में पाया जाता है। * 3. व्यावहारिक-श्री नमस्कार महामंत्र, जो आराधकों द्वारा और लेखकों द्वारा संबोधित है। 4. रूढ़- श्री नवकार मंत्र, जो नवपद युक्त होने से सर्वसामान्य द्वारा लोकवाणी में उच्चरित है। साधारणतया मन्त्र, शक्ति, वशीकरण, मारण, उच्चाटन, आकर्षण, स्तंभन, संमोहन, विद्वेषण आदि लौकिक प्रयोजनार्थ की जाती है, जिससे निर्धारित कार्य साधन में अवरोधक शक्तियों का वशीकरण आदि किया जा सके। ऐसे मन्त्रों की सफलता का आधार मन्त्र साधक की शक्ति और भावना पर निर्भर करता है। यदि साधक की भावनाएँ शुद्ध नहीं है और प्रतिपक्षी का प्रारब्ध उच्च है तो मन्त्र व्यर्थ जाता है। यदि साधक शुद्ध और सच्ची भावना युक्त हो, किन्तु मन्त्र अशुद्ध है अथवा मन्त्र शुद्ध हो किन्तु उच्चारण या विधि अशुद्ध है, या उच्चारण-विधि शुद्ध हो, किन्तु साधक का चित्त अस्थिर है, या वह दृढ़ श्रद्धावान् नहीं है तो भी मन्त्र विफल हो सकता है। नवकार महामंत्र सभी मंत्रों में इस दृष्टि से भी श्रेष्ठतम है कि उसकी शक्ति अपरिमेय है। इसके मुख्य कारण है-उसके सृष्टा लोक श्रेष्ठ महापुरुष है। उसका प्रतिपादन अर्हत् तीर्थङ्करों द्वारा हुआ है और उसकी सूत्रबद्धता गणधर भगवन्तों द्वारा
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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