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________________ (346) 'मंत्र व्याकरण' में मंत्रों के तीन प्रकार उल्लिखित है1. बीज मंत्र 2.मंत्र 3. माला मंत्र जो मंत्र एक अक्षर से 9 अक्षर तक होता है उसे बीज मंत्र, जो दस से बीस अक्षर का हो, उसे मंत्र तथा जो बीस अधिक अक्षरों से युक्त हो, वह मालामंत्र कहलाता है। इस अपेक्षा से नमस्कार मंत्र में साधिक बीस अक्षर होने से इसकी गणना मालामंत्र की कोटि में आती है। किन्तु स्पष्टता आवश्यक यह है कि माला मंत्र विशेष रूप से वृद्धावस्था में फलदायी होते हैं। जबकि यह मालामंत्र आबालवृद्ध सभी अवस्थाओं में फलदायी है। यहाँ एक शंका होती है कि मंत्र ॐ ह्रीं आदि बीजाक्षर संयुक्त होते हैं, किन्तु इस नमस्कार मंत्र में इन बीजाक्षरों का अभाव है, अतः यह मंत्र कोटि में स्थान नहीं ले सकता। इसका समाधान यह है कि यह सत्य है कि इस मंत्र में बीजाक्षरों का अभाव है, किन्तु जैन मान्यतानुसार ऊँ आदि बीजाक्षरों का निर्माण भी इन पंच पदों से होता है। जिस प्रकार हिन्दु परम्परा यह स्वीकारती है कि ब्रह्मा + विष्णु + महेश के संयोजन से ऊँ की निर्मित होती है। उसी प्रकार अरहन्त का अ, सिद्ध अर्थात् अशरीरी का अ, आचार्य का आ, उपाध्याय का उ तथा साधु अर्थात् मुनि का म अर्थात् अ अ आ उ म ओम् / इस प्रकार इन पदों से ही ऊँ निष्पन्न होता है। जब इन पंच-पदों से ही बीजाक्षरों की निष्पत्ति होती है तब उसमें बीजाक्षरों का प्रयोग करना आवश्यक नहीं है। तथापि आवश्यक न होने पर भी जैनाचार्यों ने इन मंत्राक्षरों के साथ बीजाक्षर संलग्न करके अनेकानेक मंत्ररचना की है। यथा ऊँ ह्रीं अर्हत् नमः। ॐ ह्रीं ऐं नमः। ॐ ह्रीं नमो अरहन्ताणं। ऊँ नमो सिद्धम् आदि।। उपर्युक्त सभी उद्धरणों से यह सिद्ध हो जाता है कि 'नमस्कार महामंत्र' मंत्र रूप से लब्ध प्रतिष्ठ है। इसका माहात्म्य अत्यधिक होने से इस पर शताधिक रचना होने पर भी अद्यापि ग्रन्थनिर्माण होते जा रहे हैं। यद्यपि सभी मंत्रों में यह महामंत्र अधिकांशतः किसी न किसी रूप में विद्यमान है। तथापि अन्य धर्मो की तांत्रिक साधना के अनुसरण में पश्चात्कालीन जैनों में भी कितनेक आचार्यों ने दुन्यवी कार्यों-लौकिक तथा लोकोत्तर कार्यों के लिए भी मंत्र का विनियोग किया हो, ऐसे उदारण प्राप्त होते हैं और मध्यकाल में तो जैनों का अलग ही मंत्रविज्ञान
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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