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________________ (341) विशेष को नमस्कार है और न ही किसी जाति विशेष को। वरन् यह नमस्कार गुणों पर आधारित है। यह सम्प्रदायातीत है। इस प्रकार यह देश, काल, व्यक्ति, जाति के घेरे से आबद्ध न होकर सार्वभौमिक, सार्वत्रिक एवं सार्वजनीन है। और इसीलिए इसे पंचमंगल कहने का कारण यह भी है कि जिस प्रकार तिल में तैल, कमल में मकरंद, दूध में घी, पुष्प में सुवास, तथा काष्ठ में अग्नि सर्वांशों में व्याप्त है, उसी प्रकार यह नमस्कार-सूत्र तथा उसका भाव शास्त्रों में आद्य उच्चारण किया हो अथवा न किया हो, तब भी यह समस्त शास्त्रों में व्याप्त है। इस प्रकार यह 'नमस्कार मंत्र' एक आगमशास्त्रोक्त, आद्य, महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक नामकरण है, ऐसा कहा जा सकता है। मंत्री की उपादेयता - इस नमस्कार सूत्र को मंत्र स्वरूप कैसे प्राप्त हुआ? इस पर विचार करने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि जैन धर्मदर्शन में मंत्र-तंत्र को क्या स्थान प्राप्त है? इस पर भी लक्ष दिया जाय। जैन धर्म 'आत्म सापेक्ष' धर्म है। जिसका केन्द्र बिन्दु आत्म अनुलक्षी है। आध्यात्मिक उत्क्रान्ति ही इसका परम एवं चरमलक्ष्य है। तब क्या मंत्र तंत्र को इसमें स्थान दिया गया है? जैनागमों में तंत्र शब्द का तो उल्लेख मात्र भी दृष्टिगत नहीं होता। मंत्र शब्द प्रयुक्ति दृष्टिगत तो होती है, किन्तु उसका दृष्टिकोण उपादेय तो क्या ज्ञेय भी नहीं है। मात्र हेय रूप से ही उसका मूल्यांकन किया गया है। आचाराङ्गर (ई. पू. 3 शती), सूत्रकृताङ्ग ( (ई. पू. 3 शती), ठाणाङ्ग (6 शती वि.सं.),समवायाङ्ग (वि.सं. 12 शती), ज्ञाताधर्मकथाङ्ग (वि.6.शती), प्रश्न व्याकरण (वि.6 शती.) आदि अंग आगमों में, दशवैकालिक (ई.पू.4 शती.) उत्तराध्ययन (ई. पू. 4 शती), धवला टी (8 वीं शती. शक.), स्यणसार (३-४शताब्दी) , ज्ञानार्णवर (13 वी.श.) आदिआगम सूत्रों में मंत्र-तंत्र को 1. महा नि.अ.३ सू. 15 2. आचा. सू. 2 श्रू. 1 अ. 2 उ. 3 सू., श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) 3. सूत्रकृत. सू. 1-14. 1.8.4 सू., श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) 4. ठाणं. 5.3, 5.194, 9.27.1 सू., श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) 5. समवाय. 29.1 सू., श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) 6. ज्ञाता. 1.5.55 सू., श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) 7. प्रश्न व्या. 2.12, 7.10-11 सू., श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) 8. दश.-८.५० सू., श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) 9. उत्तर. 15.8, 36.264 जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लाहौर) १०.धवला टी.-१३.५, 5, 82.349.8 जैन साहित्योद्धार फंड कार्यालय, अमरावती (बरार) 11. रयणसार 109. गुज. दि. जैन, सि. संरक्षिनी, हिम्मतनगर (गुज.) (3-4 शताब्दी) 12. ज्ञानार्णव 4.52-55 : श्रीमद् राजचन्द्र जैन शास्त्रमाला, आगास वाया आणंद (गुज.)
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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