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________________ (328) शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी इस लाल वर्ण का महत्त्वपूर्ण योगदान है। तृतीय नेत्र, पिच्यूटरी ग्रंथि और उसके स्त्रावों को नियंत्रित करने के लिए लाल रंग बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। लाल रंग इस ग्रंथि को तो सक्रिय बनाता ही है, वह नाड़ी मंडल और रक्त को भी सक्रिय बनाता है। पांचों इंद्रियों की क्रियाशीलता इसी रंग पर निर्भर करती है। यह सरेब्रो-स्पाइनल द्रव पदार्थ को प्रेरित करता है। लाल किरणें ताप पैदा करती है, और शरीर में शक्ति का संचार करती है। यह किरणें लीवर और मांसपेशियों के लिए लाभप्रद होती है। लाल रंग मस्तिष्क के दांए भाग को सक्रिय रखता है। लालकिरणें शरीर के क्षार द्रव्यों को तोड़कर आयोनाइजेशन करती है। ये आयोन्स विद्युत चुम्बकीय शक्ति के वाहक होते हैं। __ मनोविज्ञान की दृष्टि से लालवर्ण स्वास्थ्य प्रद माना जाता है। यह प्रतिरोधात्मक होता है। सक्रियता पैदा करना यह इस रंग की विशेषता है। फलस्वरूप सुस्ती, आलस्य या जड़ता का नाश करके स्फूर्ति का संचार करता है, ताजगी का एहसास कराता है। गुणों में रजोगण का रंग भी लाल ही है, तथा 6 लेश्या में तेजो लेश्या का वर्ण भी लाल प्ररूपित किया गया है। तेजो लेश्या का बाल सूर्य जैसा ही लाल रंग है। लाल रंग का तत्त्व है-अग्नि। लाल रंग अर्थात् तेजस्विता, दीप्ति, प्रवृत्ति और सक्रियता का स्रोत / वस्तुतः यह रंग हमारा स्वास्थ्य है। चिकित्सक आरोग्य हेतु सर्वप्रथम रक्त में निहित श्वेतकणों एवं रक्त (लाल) कणों का निरीक्षण करता है। लाल कणों की कमी अस्वास्थ्य का द्योतक है। परिवर्तन का प्रारंभ लाल रंग में यह क्षमता है कि वह बाह्य जगत् से अन्तर्जगत् में ले जा सकता है। जब तक कृष्ण-नील-और कापोत ये अप्रशस्त लेश्या काम करती है, तब तक व्यक्ति अन्तर्मुखी नहीं हो सकता, आध्यामित्क नहीं हो सकता, अन्तर्जगत् की यात्रा नहीं कर सकता। लाल रंग के अनुभव से, तेजस् लेश्या के स्पंदनों की अनुभूति से अन्तर्जगत् की यात्रा प्रारंभ होती है। आदतों में, विचारों में, व्यवहार में, आचरण में परिवर्तन आना प्रारंभ हो जाता है। कृष्ण, नील, कापोत-लेश्या के प्रभाव से असत्विचार, आदतें तेजस् लेश्या के प्रकाशमय लाल रंग से समाप्त होने लगती है। फलतः स्वभाव में भी परिवर्तन आने लगता है। 1. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ. 29-30 2. वही पृ. 65
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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