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________________ (317) अर्थात् जो साधक एकाक्षर ब्रह्मस्वरूप ॐ का उच्चारण करता हुआ देहोत्सर्ग करता है, वह परम गति को प्राप्त करता है। यजुर्वेद में इसे 'ओउम् खम्ब्रह्म', छान्दोग्य उपनिषद् में 'ओउम् इति ऐतदन्तर उद्गीतमुपासीत्' एवं 'ओंकार एंवेदं सर्वम्', कठोपनिषद् में 'ओमित्येतत्', मैत्र्युपनिषद्, में 'ओमित्यात्मानं युञ्जीत, तैत्तिरीय उपनिषद्' में 'ओमिति ब्रह्म' इस प्रकार उल्लिखित किया गयाहै। इन सभी उद्धरणों से यही ध्वनित होताहै कि ओम् ही ब्रह्म है। वैदिक परम्परा के समान बौद्धों का भी यह प्रधान मंत्र है-'ओउम् मणिपट्टे हुम्' . सिक्ख सम्प्रदाय में तो 'एक ओंकार सद्गुरु प्रसाद' कहकर इसके महत्त्व को शिरोधार्य किया है। भाषाविदों के अनुसार फारसी भाषा में 'अलिम्' का रूप धारण करके ऊँ ने स्थान प्राप्त किया है। अंग्रेजी भाषा में यह OMEN के रूप में आसीन है। इसी भांति जैन परम्परा में भी इसे सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ है। आचार्य हेमचन्द्र ने इसे समस्त मंत्रों में मंत्र कहा है ओंकारमिव मंत्राणामाचं संगीत कर्मणाम् ... श्री रत्नमंदिरगणि ने भी इसकी महिमा का गुणगान इस प्रकार किया है ओंकार कल्पतरु से भी अधिक अभीष्ट प्रदान करने वाला है, शब्द ब्रह्मरूपी अद्वितीय रत्नाकर का विकास करने के लिए चन्द्रमा के समान है, मंगलों का कारण है, असीम महिमा का महार्णव है, सभी परमेष्ठिओं का वाचक है और बुद्धिमानों के लिए आराधनीय है, ऐसा ओंकार तुम सभी को शुद्ध बुद्धि प्रदान करे। 1. यजु. अ. 40 मंत्र 17/ 2. छान्दोग्य उप. 2.23 3. तैत्तीरीय उप. 1.8.1 4. मैत्री उप.६.३ 5. तैत्तीरिय उप. 1.8.1 6. त्रिषष्ठि शलाकार पुरुषचरित, 1.6.707 7. भोजप्रबन्ध मंगलस्मरण
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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