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________________ (314) इस क्षेत्र में पाँच प्रकार से प्रसार करता है 1. साधु प्रतिदिन धर्मोपदेश के लिए प्रवचन सभा में जाता है। इन सभाओं में मुमुक्षु एवं जिज्ञासुओं के साथ ज्ञान-विज्ञान की चर्चा करता है। 2. प्रवचन सभा के अतिरिक्त संगोष्ठी भी आयोजित करते हैं, जिनमें साधुओं के साथ-साथ विद्वान् वर्ग भी सम्मिलित होते हैं। चर्चा के साथ विचारों का आदान-प्रदान, शंका-समाधान एवं गूढ़ तत्त्वों पर मंथन होता है। इस प्रकार इन संगोष्ठियों के माध्यम से ज्ञान-शिक्षा के प्रसार का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। 3. बालक, पुरुष, स्त्रियाँ आदि के लिए शिक्षण शिविर का आयोजन कराने में साधुओं का प्रमुख हाथ है। इसका श्रेय साधु को जितना दें, उतना कम है। 4. कई शिक्षालय, विद्यालय, महाविद्यालय और यहाँ तक विश्वविद्यालय की स्थापना सद्गुरुओं के उपदेश का प्रतिफल है। प्राचीन आश्रम व्यवस्था की भांति आज भी गुरुकुलों की स्थापना करके समाज में साक्षरता के कदम प्राचीन पद्धति के अनुसार बढ़ाये जा रहे हैं। इनका संचालन-निर्देशन में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। 5. विद्यालयों के साथ-साथ पुस्तकालय, वाचनालय आदि की स्थापना भी साधुओं के वरद् हस्तों से हुई है। जिसके द्वारा, भी समाज में ज्ञानार्जन का मार्ग प्रशस्त हुआ है। __ वस्तुतः साधु अपने त्याग एवं वैराग्य पूर्ण जीवन, आचरण के द्वारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस आकर्षण के माध्यम से वह लोक कल्याणकारी कार्य करता है। वह स्वयं तो निष्परिग्रही जीवन जीता है एवं उसी निस्पहता के माध्यम से समाजसेवा एवं ज्ञान प्रसार के लिए संस्थाओं की स्थापना करता है। अपने अनुभव के माध्यम से गतिप्रदान करता है। ___ इस प्रकार जैन साधु अपने आत्मकल्याण के साथ ही साथ परमार्थ का भी कार्य करता है। इससे स्पष्टतः ज्ञान हो जाता है कि साधु का राष्ट्रीय क्षेत्र में योगदान सदैव प्रशंसनीय रहा है। साधुत्व की उपयोगिता आज समाज के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण है, इसकी जानकारी हमें मिली। राष्ट्र निर्माण के कार्य में साधु का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्राप्त सहयोग इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। जो कि युग-युग में सुप्त-चेतना को जागृत करने में पूर्णरूप से सहयोग देता रहेगा।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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