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________________ (300) इस समिति का आलंबन ज्ञान, दर्शन व चारित्र है। साधक स्वाध्याय व ध्यान के लिए, आहार-पानी-वस्त्रादि एषणीय पदार्थों की गवेषणा के लिए, शारीरिक मल-मूत्रादि विसर्जन के लिए और ग्रामान्तर जाने के लिए गमनागमन करता है। यही प्रस्तुत समिति का आलंबन है। __2. काल-साधु ईर्यासमिति का पालन कालानुसार अर्थात् दिन में करे, रात्रि में नहीं। 3. मार्ग-उत्पथवर्जित (सुमार्ग) मार्ग पर गमन करे। कुमार्ग में जाने से संयम की विराधना होने की संभावना है। 4.यतना-यतना द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से चार प्रकार की कही गई है। द्रव्य से आंखों से जीवादि द्रव्यों को देखकर चले, क्षेत्र से युगप्रमाण (चार हाथ) भूमि आगे देख कर गमन करे, काल से जब तक दिन रहे और भाव से अपने उपयोग को पाँच इन्द्रियों के विषय, पाँच प्रकार स्वाध्याय को वर्जित करके चले। प्रस्तुत समिति की समग्र विवेचना में प्रमुख दृष्टि अहिंसा महाव्रत की रक्षा है। अहिंसा की परिपालना जीव रक्षा है। अहिंसा की परिपालना जीव रक्षा में निहित है, अतः जीवरक्षा करते हुए गमन करने का विधान है। 2. भाषा समिति विवेकपूर्वक भाषा का प्रयोग करना भाषा समिति है। क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, वाचालता और विकथा इन आठ दोषों से रहित आवश्यकतानुसार भाषा में प्रवृत्ति करना। इनको त्याग कर बुद्धिमान साधु समय पर निरवद्य (पाप रहित) परिमित भाषा बोले। मुनि अपेक्षा, प्रमाण, नय और निक्षेप से युक्त हित, मित, मधुर एवं सत्य भाषा बोले। बर्क का कथन है कि संसार को दुःखमय बनाने वाली अधिकांश दुष्टताएँ शब्दों से उत्पन्न होती है। इस प्रकार साधु को भाषा विवेक सावधानी के साथ करना चाहिये। समयानुकूल विवेकपूर्वक किया गया भाषा का प्रयोग सत्य महाव्रत के पालन में सहायक होता है। 1. उत्तरा 24.4 2. आचा. 2.8.90. 263-64 . 3. वही 2.1.14 4. वही 5. उत्तराध्ययन 24.5 6. वही 7. उत्तरा. 24.6, दशवैकालिक 5.1.9-10 8. उत्तरा 24.9-10 9. आचा. 2.4.133-140, दशवै. अ. 7, आव. हारिभद्रीया वृत्ति. 10. अमरवाणी प्र.१०७
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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