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________________ (290) साथ ही कहा है कि यदि किसी को स्वर्ग के उच्च स्थल पर पहुँचना हो तो ब्रह्मचर्य के समान उस स्थल पर पहुँचने के लिए अन्य कोई सीढ़ी नहीं। बौद्ध त्रिपिटक में ब्रह्मचर्य तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है1. दीघनिकाय में यह बुद्ध द्वारा प्रतिपादित 'धर्ममार्ग' के अर्थ में,२ . 2. इसी निकाय के पोट्ठपाद में उसका अर्थ 'बौद्ध धर्म में निवास'३ है, जिससे निर्वाण की प्राप्ति होती है। 3. इसका तीसरा अर्थ मैथुन विरमण किया गया है।' इस प्रकार बौद्ध परम्परा में भी ब्रह्मचर्य का महत्त्व कम नहीं है। 'शीलसमाधि-प्रज्ञा' इस रूप में शील को प्रथम स्थान दिया गया है। इसे ही निर्वाण (मोक्ष) का द्वार रूप से स्वीकार किया गया है। ब्राह्मण परम्परा में ब्रह्मचर्य वैदिक परम्परा में आश्रम व्यवस्था स्वीकृत है। चार आश्रमों में प्रथम ब्रह्मचर्याश्रम है। इस पर ही अन्य आश्रमों की नींव टिकी है। ऋग्वेद', अथर्ववेद, तैतिरीय, संहिता', शतपथ ब्राह्मण में ब्रह्मचर्य और ब्रह्मचारी शब्दों का उल्लेख हुआ है। वैदिक काल आश्रम की धारणा स्पष्ट रूप से प्राप्त नहीं होती। जबकि छान्दोग्योपनिषद् में पहले आश्रमों का वर्णन हुआ है। जाबालोपनिषद् में चारों ही आश्रमों का स्पष्टतः उल्लेख है। कालान्तर में धर्मसूत्रों में आश्रम व्यवस्था पूर्णतः स्पष्ट हुई। __ब्रह्मचर्याश्रम में तो इसकी प्रधानता है ही, किन्तु अन्य गृहस्थाश्रम के अतिरिक्त दोनों वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम में भी इसकी परिपालना पूर्णरूप से की जाती है। गृहस्थाश्रम में भी इसकी मर्यादित छूट दी गई है। ___ यहाँ तक आचार्य वात्स्यायन ने कामशास्त्र में भी इसकी गरिमा को गौरवान्वित किया है। इस प्रकार वैदिक परम्परा में भी ब्रह्मचर्य को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। 1. विसुद्धिमग्ग परि. 1 2. दीघनिकाय महापरिनिव्वाणसुत्त पृ. 131 3. वही पोट्ठपाद पृ.७५ 4. विसुद्धिमग्ग प्रथम भाग पृ.य 195 5. ऋग्वेद 10.109.5 6. अथर्ववेद 5.17.5, 11.5.1.26 7. तैतरीय संहिता 3.10.5 8. शतपथ ब्राह्मण 9.54.12 1. छांदोग्य 2.23.1 10. जाबाल उप.४ 11. गौतम धर्मसूत्र 3.1.35, बोधायन धर्मसूत्र 2.6.29
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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