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________________ (283) अहिंसा में विरोध उपस्थिति हो जाता हो और उनमें से किसी एक का ही पालन करना हो तो इस परिस्थिति में अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए सत्य को अपवाद रूप में स्वीकार किया गया है। आचाराङ्ग सूत्र में कथन है कि "यदि भिक्षु मार्ग में जा रहा हो और सामने से कोई शिकारी व्यक्ति आकर उससे पूछे कि क्या तुमने किसी मनुष्य अथवा पशु आदि को इधर आते देखा है? ऐसी परिस्थिति में प्रथम तो साधु उसके प्रश्न की उपेक्षा करके मौन रहे / यदि मौन रहने जैसी स्थिति न हो अथवा मौन रहने का अर्थ स्वीकार करने की संभावना हो तो जानता हुआ भी यह कह दे कि मैं नहीं जानता।" यहाँ स्पष्टतया सत्य व्रत में अपवाद मार्ग का सेवन किया गया है। ऐसा ही उल्लेख निशीथ चूर्णि में भी किया गया है। बृहदकल्पभाष्य में भी नवदीक्षितों को संयम में स्थिर रखने के लिए गीतार्थ द्वारा कुछ अपवादों को स्वीकार किया गया है। ___ वस्तुतः यहाँ अपवाद मार्ग का स्वीकार अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए नहीं किया गया वरन् असत्य का आश्रय अहिंसा अथवा जीव दया को लक्ष्य में रखकर किया गया है। भगवान् महावीर ने भी अपने जीवन में कई उपसर्गों का सामना मौन धारण करके किया। आगमिक दृष्टिकोण में अहिंसा एवं सत्य की परिपालना पर जोर दिया गया है। अपवाद मार्ग की स्वीकृति सापेक्ष दृष्टिकोण को रखकर ही दी गई है। आचार्य शीलांक ने आचाराङ्ग व सूत्रकृताङ्ग दोनों ही वृत्तियों में अपवाद के सन्दर्भ में स्पष्ट रूप से कहा है कि "प्रवंचना की बुद्धि से रहित मात्र संयम की रक्षा के लिए एवं कल्याण भावना से बोला गया असत्य दोष रूप नहीं है।" 3. सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं (अस्तेय महाव्रत) __ जैन परम्परा में अहिंसा एवं सत्य के समान ही "अस्तेय" पर भी गहराई से चिन्तन किया गया है। सामान्यतया अस्तेय का अर्थ चोरी नहीं करना किया गया है। जैन परम्परा में इसका विराट् स्वरूप ग्रहण किया गया है। इसके लिए प्रयुक्त किया है 'अदत्तादान' अर्थात् बिना दी हुई वस्तु को स्वयं की इच्छा से उठाना, स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी वस्तु को ग्रहण करना व उसका उपभोग एवं उपयोग करना अदत्तादान है- इसका त्याग करना। प्रश्नव्याकरण सूत्र में स्तेय और अस्तेय की विस्तार से व्याख्या की गई है। उसमें स्तेय और अस्तेय के अनेक रूप बताये हैं। किसी की निन्दा करना, किसी 1. आचा. 2.133.129 2. निशीथचूर्णि 322 3. बृहत्कल्प 2.82 4. प्रश्नव्याकरण आस्रवद्वार अध्य. 3, तथा संवर द्वार अध्ययन.३
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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