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________________ (264) 4. परमहंस-परमहंस संन्यासी सदैव ही पेड़ के नीचे शून्यगृह या स्मशान में निवास करते हैं। सामान्यतया नग्न रहते है तथा सदैव आत्मभाव में लीन रहते हैं। यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो परमहंस साधु के प्रकार को जिनकल्पी साधु की कोटि में लिया जा सकता है तथा अन्य की तुलना किंचित् स्थविर कल्पी से की जा सकती है। किन्तु फिर भी भिन्नता तो है ही। साधु के इन पाँच प्रकारों का उल्लेख सामान्यतया निर्ग्रन्थ के प्रकारों से हुआ है। तत्त्वार्थसूत्र के विवेचक पं. सुखलालजी का कथन है कि "निर्ग्रन्थ शब्द का तात्त्विक (निश्चयनयसिद्ध) अर्थ भिन्न है और व्यावहारिक (साम्प्रदायिक अर्थ भिन्न है। दोनों अर्थों के एकीकरण को ही यहाँ निर्ग्रन्थ सामान्य मानकर उसी के पाँच भेद कहे गये हैं। निर्ग्रन्थ वह है जिसमें रागद्वेष की गांठ बिल्कुल न रहे। निर्ग्रन्थ शब्द का यही तात्त्विक अर्थ है। अपूर्ण होने पर भी तात्त्विक निर्ग्रन्थता का अभिलाषी हो-भविष्य में वह स्थिति प्राप्त करना चाहता हो-वह व्यावहारिक निर्ग्रन्थ है। पाँच भेदों में प्रथम तीन व्यावहारिक है और शेष दो तात्त्विक है। " (5) जैनधर्म और व्रत परम्परा भारतीय संस्कृति में व्रतों का प्रादुर्भाव कब से हुआ? डॉ. हर्मन जेकोबी के अनुसार "जैनों ने अपने व्रत ब्राह्मणों से उधार लिए हैं।" ब्राह्मण संन्यासी मुख्यतया अंहिसा, सत्य अचौर्य, सन्तोष और मुक्तता-इन पाँच व्रत का पालन करते थे। जेकोबी का अभिमत है कि जैन महाव्रतों की व्यवस्था के आधार उक्त पाँच व्रत बने हैं। वस्तुतः उनका यह अभिमत कहां तक सत्य है, उस पर विचार करना होगा। यदि व्रतों की परम्परा का ऐतिहासिक अध्ययन करें तो अहिंसा आदि व्रतों का मूल ब्राह्मण परम्परा में नहीं पायेंगे। हो सकता है कि डॉ. जेकोबी ने बौधायन में उल्लिखित व्रतों के कारण यह कल्पना की हो। किन्तु प्रश्न फिर भी रहता है कि उसमें भी व्रत कहाँ से आए? - व्रतों का संयास के साथ अविच्छिन्न संबंध है। संयास आश्रम चतुर्थ आश्रम है, ऐसे कुल आश्रम चार हैं / वेदों में आश्रम का उल्लेख नहीं किया गया है। और न ही ब्राह्मण और आरण्यक ग्रन्थों में इसकी चर्चा है। सर्व प्रथम इसका उल्लेख 1. तत्त्वार्थ सूत्र पृ. 232
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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