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________________ (261) 2. दर्शनपुलाक-सम्यक्त्व के अतिचारों का सेवन करने वाला दर्शनपुलाक 3. चारित्रपुलाक-मूलगुण और उत्तरगुण में दोष लगाने वाला चारित्रपुलाक है। 4. लिंगपुलाक-शास्त्रविहित उपकरणों से अधिक उपकरण रखने वाला या बिना ही कारण अन्य लिंग को धारण करने वाला लिंग पुलाक है। 5. यथासूक्ष्मपुलाक-प्रमाद वश अकल्पनीय वस्तु को ग्रहण करने का मन में चिन्तन करने वाला या उपर्युक्त पाँचों अतिचारों में से कुछ अतिचारों सेवन करने वाला यथासूक्ष्म पुलाक है। इस प्रकार पुलाकश्रमण के पाँच भेद हैं। 2. बकुश जिसके चारित्र में स्थान-स्थान पर धब्बे लगे हुए हैं, वह बकुश साधु है। शरीर विभूषा आदि के द्वारा उत्तरगुणों में दोष लगाने वाला भी बकुश है। इसके चारित्र में शुद्धि और अशुद्धि दोनों का सम्मिश्रण होने कारण शबल-विचित्र वर्ण वाले चित्र की तरह विचित्रता होती है। बकुश साधु भी पाँच प्रकार के होते हैं:___ 1. आभोगबकुश-जानबूझकर शरीर की विभूषा करने वाला आभोग बकुश 2. अनाभोगबकुश-अनजान में शरीर की विभूषा करने वाला। 3. संवृतबकुश-छिप-छिपकर शरीर आदि की विभूषा करने वाला। 4. असंवृतबकुश-प्रकटरूप में शरीर की विभूषा करने वाला। 5. यथा सूक्ष्मबकुश-प्रकट या अप्रकट शरीर आदि की सूक्ष्म विभूषा करने वाला। इस प्रकार शरीर और उपकरण के संस्कारों का अनुसरण करने वाला, सिद्धि तथा कीर्ति का अभिलाषी सुखशील अविविक्त (ससंग), परिवारवाला तथा छेद (चारित्र) पर्याय की हानि तथा शबल अतिचार (दोषों से युक्त निर्ग्रन्थ)। 1. स्था. 5.186
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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