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________________ (259) अपने हाथ से नहीं निकालता है। वह रात्रि में गहरी नींद नहीं सोता वरन् बैठे 2 ही अल्पकालिक झपकी लेते हुए आत्मचिन्तन में रात्रि व्यतीत कर देता है। विहार करते हुए यदि सामने से शेर आदि हिंसक प्राणी या हाथी, घोड़ा आदि कोई उन्मत्त प्राणी आ जाता है, तो वह एक पैर भी पीछे नहीं हटता वरन् वहीं खड़ा हो जाता है। जब प्राणी आगे निकल जाये तब वह आगे विहार करता है। इस प्रकार वह आगमोक्त मर्यादा से अपनी प्रतिमा का पालन करता है।' दूसरी से लेकर सातवीं प्रतिमा वह क्रमशः दो से लेकर सात-सात दत्तियाँ लेता है। आठवीं प्रतिमा सात अहोरात्र की होती है। इसमें मुनि उपवास करता है, गाँव के बाहर रहता है और उत्तान आदि आसन में स्थित होता है। नौवीं प्रतिमा भी इसी प्रकार की है किन्तु उत्कटुक आदि आसन में स्थित होता है। दसवीं में भी इसी प्रकार वीरासन में स्थित रहता है। ग्यारहवीं प्रतिमा दूसरे उपवास में करनी होती है। बारहवीं प्रतिमा तीसरे उपवास में की जाती है। इसमें मुनि की शारीरिक मुद्राइस प्रकार होती है-प्रलम्बन बाहु, सटे हुए पैर, आगे की ओर झुका हुआ शरीर तथा अनिमेष नयन।। भगवान महावीर ने म्लेच्छ प्रदेश दृढभूमि के पोलास नामक चैत्य में यह महाप्रतिमा धारण की थी। इस प्रकार बारह भिक्षु प्रतिमाओं को ग्रहण करके मुनि अपने कर्मों को क्षीण करता है। जिन कल्पी मुनि के सदृश उत्कृष्ट संयमी ही इसे धारण कर सकते हैं। (4) साधु के प्रकार जैन परम्परा में साधु के प्रकार साध्वाचार के नीति नियमों व साधना के स्तर के अनुसार किये गये हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में आचरण के नियमों के आधार पर दो प्रकार किये गये हैं-1. जिनकल्पी 2. स्थविर कल्पी 1. जिनकल्पी - जिनकल्पी साधु की साधना अत्यन्त उत्कृष्ट होती है। राग-द्वेष, कषाय, इन्द्रिय, परीषह, उपसर्ग और अष्ट प्रकार के कर्मों को जीतने वाले निर्ग्रन्थ के कल्प को 1. समवायांग वृत्ति. पत्र 21 2. वही 3. आव. नि. मलय. वृत्ति पत्र 288 4. विशेषावश्यक भाष्यवृत्ति. 7
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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